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मुनि समाचंद एवं उनका पद्मपुराण
धनुष बैंचि करि मारे बाप । भभीषण के कंठ लाम्या वाण ॥ टूटया धनुष भभीषण वच्या । वह जुष दोघा मच्या ॥३३६५।। विजुली सम घिमक षडम । बाई रहां तिहां सगला सरग ।। तिहां होवे तीर तुपक की मार । बधार सुकर संघार ॥३३६६॥ मार खड्ग मुख गिर पड़े । तो न सुभद घरती पर पसे ।।
मुस साता भी नहीं बना ।। ३३६७।। स्रोशित की वैतरणी बद्दी । पडी लोथ कहां रही नहीं मही । हाथी घोडे झुझे घणे । परवत सम र तिहां वणे ॥३३६८।। पग परवे . रहीयन ठौर । दोउ ी मांची बहु कोहि ।। राम कुभकरण सूपुष । लक्षमण ने इन्द्रजीत सूविरुष ।।३३६६।। दुइंधां बांण पई ज्यों मेह । भालिन फूट इनू की देह ।। लक्षमण इन्द्रजीत लिंग माय । मपडि रथ सौं पटके जाइ ॥३३७०॥ रावण की सेना भाजि के चली । इन्द्रजीत संभाल्पा बली ।। रथपरि चढचा बहुरि संभारि । सेन्यां सकल लई इंकार ॥३३७१।। बुबा बाण छोरुया इन्द्रजीत । लक्ष्मण सूर्यवाण मन' चित ।। छोडे बारण उजाला भया । अंधकार सगला मिट गया ॥३३७२।। नागपासनी छोडी विद्या । गरुड बाग में होई भिधा ।। वह विद्या लक्षमण ने गही । छोडी इन्द्रजीस सामही ।।३३७३।। रावण का सुत मुयिंत । नाफ फास सुषि तुरन्त ।। कभकर्ण रामचंद्र सुलई । रथ समेत वह ऊषा पडे ॥३३७४।। रामचंद्र फिर रथ परि बढे । या समए क्रोष प्रति म ।। नाग फासि बोध्या कुभकर्ण । मूर्थावंत प्राण का हर्ण ॥३३७५।। लागे सर्प उनू की देह · काटै तिह का प्राण हर लेत् ।। खंचे देह सुन व्याप घणां । अंसा.कष्ट उनों कों बणां ।।३३७६।। भामंडस इन्द्रजीत डिंग प्राण । रथरि डाल लिये बलान ।।
विराधित कुंभकर्ण सिके उठाय । रथ परि ततक्षरण लिया पढाय ॥३३७७।। समन रावण युद्ध
बोले रावण सुरिण लक्षमणा । तेग भी पाया है मरणां ।। लक्षमण बील रावण सुण । तो कु अब पलही में हों ।।३३७८॥ दारुण जुष दोउषां होय । द्वारि न मान हूँ में कोम ।। प्रसक्ति बारा रावण दे तारिए । लक्षमण के उर लाग्या आणि ॥३३७९॥