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पपुराण
हस्त प्रहस्त के लाग्या घाब । अझ ऊभा सेनापति राव ।। नल नील दोऊ जीत्या वीर । रामप्रताप अति साहस धीर ।। ३२७४।।
श्री रघुबल प्रता, इनका पल त्वत धर्मा ।। रावरण मन संताप, हस्त प्रहस्त बोन्यु मरया ।। ३२७५।। इति श्री पथपुराणे हस्त प्रहस्त मप विधानक
५३ वां विधानक
चौपई हस्त प्रहस्त कथा
शिक नप पूछ कर जोडि । हस्त प्रहस्त की कथा बहोडि ।। राक्षस बंसी के सेनापती । उनै हणे बहुते भूपती ।। ३२७६।। इन सनमुन कोई जीत न सके । नल नील प्रागे किम भकं ।। नल नील ने मारया ततक्षणे 1 इह प्रचिरज काछ कहत न बरणे ।।३२७७।। इनका भेद स्पोरा सु कहो । इह संसय मो मन का गहो । श्री जिन की वाणी तब हुई । बारह सभा सुरग सच कोंइ ।।३२७८।। श्री गौतग समझाव भेद । सब संसय का हो विच्छेद ।। कंस सुमत सोमर का नाम | इंद्र कपिल वाभण तिण ठाम ।।३२७६ ।। करण खेती करम किसाण । ते नित करें क्या सु दाग । नित उठि दान सुपा देह । पूजा रचना सदा करेइ । ३२८॥ रागद्वष इन के मन नहीं । सोक पड्यो उपजान्यां कहीं ।। निस्वा कुटुंब नयासिक दार । इन्द्र कपिल द्विज लेहु हकार ॥३२८१।। मांग दामनि उपज्या खेस । मार किसाण द्रव्य के हेत ।। भोग भूमिहर क्षेत्र जाइ । दोन्यु विप्र देवगति पाइ ।।३२८२।। दोय पल्य की मूगती माय । सहा ते लही स्वर्गगति ठाव ।। निस्वा कुटुयन बन के मांस । दोनु घले पड़ गई सांझ ।।३२८३।। दोय पल्य की भुगती भाव । उहाँ त लही स्वर्गगति होव ॥ निस्वा कुटुंबन वन के मांझ । दोनु चले पड़ गई सांझ 11३२८३।। सीतकाल सुदुखित भए । मरकरि सातमी नरके गये । भरमे लख चौरासी बौंनि । ते दुख वर्ण समं कवि कौन ॥३२६४।। दौऊं विप्र घर सुत भए । जनमत मात पिता मर गये ।। दुख में दोउं समाया भए । संन्यासी पं दिध्या लये ॥३२८५॥