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मूनि सभापंद एवं उनका पद्मपुराण
रावण को सेन्या बली, सिसको नाही मत ।। एक एक रथी सरस रावण अति बलवंत ।। ३२६२।। पति श्री पमपुराणे हनुमान लंका प्रस्थान विधानक
५२ वां विधानक
चौपई राम को सेना
रामचंद्र प्रब साजी सैन । कीयो गबन महरत प्रेन ॥ नल अरु नील प्रगाऊ चले । सूर सुभट लीने संग भले ।।३२६३।। हनुमान जांधूनंद समान । जैमित्र चंदाभ बलबान ।। परवन कुमर रतन महेन्द्र । भामंडल बद्ध अपर नरेन्द्र ॥३२६४।। बिक रय प्रति कंठ महाबल । सूरज उदय सरव प्रिय प्रदल ।। बेल प्रिय सरव सार्दूलबुध । सर्वोत्रएन सरव बुध ।। ३२६५।। निव निष्ठ प्रच संत्रास । विधन सुदन नटवर पास ।।। पापी लोल महामंडल । संग्राम बषल का बहु वल ॥३२६६॥ परम घीर प्रस्तर दिनवांन । भगदत्त द्र पद पूर्ण चंद समान ।। विधुसागर निससागर मूप । प्रसकेद पादप चंद्र सरूप ।।३२६७।। इंद्रोवधि और गोतर वास । सकट पौन बनकरण पास ।। बलसील सिंधोवर समेद । प्रचल साल आण सुभ भेद ।। ३२६८।। महाकाल अवर रविकाल । प्रगतिलक सुलेन तरवाल ।। भीम महामीम रथ परम । मनोहारि हर मुस्ख बहु भरम ।।३२६६।। धरमति सार अर सुरजजटी । सिबदूषन प्रवर रसनजटी ।। विराषित मनोहर सेम 1 नंद नंदनी विधत वाहन जो हेम ।।३२७०।। बहुत मूप की सेना वणी । नामावली न जाये गिरणी॥ पचीस लाल हाथी की छोर । सुग्रीव साथ उभा नप और ॥३२७१।। भावमंडल किरान छन । भने लक्षमण महा विचित्र ।।
बाजा बान होवें सोर । अंगद प्रगाऊ हुदो तिण ठोर ।।३२७२।। रावण के हस्त प्रहस्त योद्धानों को हार
दोउं सेन्या सनमुख भई प्राय । हस्त प्रहस्त स दोर राय || उत नल नील ल. शास्त्र बांधि । बदन जुध भयो वह भांति ।।३२७३।।