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________________ मुनि सभाब एवं उनका पयपुराण २६७ राजा धणे सभा में खड़े । एक एक तें प्रतिबल भरे॥ रावण के बाजै नीसांन । रहै सेना सबद सुरण कान ।। ३१६०।। सोरठा पनि पनि आज दिनस, करं काज जो प्रभु तणों ।। पानंदीया नरेस, सबद सुनत रणभेरि को ॥२१६१॥ चौपई मोसानों का रावण को पुनः समभामा ओधा सुभट जुड़े सव माय । कुंभकरण भभीषण राय 11 इन्द्रजीत बोले कर जोडि । उज्जल कुल मति लगावो खोडि || ३१६२।। अब लौं जस निर्मल चहु देस । परत्रिय चोरी सुनो नरेम ।। बदै प्रपलोक का किये अनीत । समझो प्रमू परम की रीत ।।३१६३।। वेद पुराण सुणी इह बात 1 परनारी है विष की जात । खाय हलाहल इक भव मर ! परदारा त भव भव दुख भरै ।।३१६४॥ सीता रामचंद्र कू' बेहु । निर्मम बैठा राज करे ।। अठारह सहन हतं तुम नारि । रूपवंत शशि की उणहारि ।।३१६५।। कहा एक सीता बापड़ी । ता कारण एह अड़ी पापडी ।। रावण का पुन: कोधित होना सुरिण रावण कोपियो बहुत । इन्द्रजीत क्यों उरप पूत ॥३१६६।। प्रस्त्री है चिंतामणि रत्न । जो मा पार्द काहू जतन ॥ हाथ बढी किम दीजे छोडि । भूर सुमट को लामै षोडि ।।३१६७।। अंसा भय किसका मैं घरू' । जे अपणी टेक तंटरू । जो तुम जुध करके सौं डरो। जाय कहां छिपकै दिन भरो ।।३१६८।। विभीषण का इन्द्रजीत से वपन भभीषण इन्द्रजीत सौं कही । तुम सम कोई दुरजन नहीं ।। तू नै इसे सुणाये वन । या के मनकू भयो प्रचंन ।।३१६६।। भली वात याहे लाग बुरी । प्राई याके मरण की घडी ।। राम लक्षमण दोऊ बलबंत । उनका सेवग है हनुमंत ॥३२००।। सुग्रीव पौर विद्याधर घणे । भामंडल पराक्रमी सुणे ॥ दिन दिन सेना उन संग बर्ष । पल में उनके कारज सघ ॥३२०१।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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