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________________ २९६ पपपुराण सुखेम राय परि भेज्या नौल । पकडिया तुरत न लागी ढील ॥ हंस दीप कीयो विश्राम | सब सेनां उत्तरी तिण ठाम ।।३१७६।। जव लग भामंडल नहीं मिले । तब लग हंस वीप से न चले ।। रही सेन सगली तिन ठौर । भूपत्ति प्राय मिले सब पोर ।।३१८०।। अडिल्ल पूरय पुन्य उदै बहुत सेना जडी जीत भई मग चलस ही साधी पुरी ।। चरण नये सब प्राय भूप बघणं दिन दिन अधिक प्रताप बढ चऊ गुणं ॥३१५१॥ इति श्री पद्मपुराणे राम लंकापुरी प्रस्पान विधानक ४६ वा विधानक रावण का चिन्तन रावण अंसी पाई सुषि । क्रोघवंत होई सोचे दसकंष ।। अजोध्या नुप मूमिगोचरी । हम ऊपर प्रा डर नहीं करी ॥३१८२॥ देखो इनहे लगाऊ हाथ । मेरे लोग सब मिलिया साप । यह देखो संसारी रीत । जिरणकौं मैं जाणे था मित्त ॥३१८३३॥ सेवग मोसों औरी भए । अंसा कर्म उनां न किये ।। रामचंद्र किषधपुर राखि । सुग्रीव मेरी अपकीरत भाष ।।३१८४॥ हनुमान प्रवर नरपति मिले । मेरा उदय न चाहे भले ॥ उनको समझा मैं पापणां । एसड़ किये उन्का उपणा ।।३१८५।। जे तपसी सों मिलते नहीं । तो पाए सकते नहीं। ए ल्याये उनकू इस ठौर । एती सेन्यां उन साथै जोरि ।।३१८६॥ ऐसा निकर नहीं कोई और । ताथी मांधी इण ठा रोर ।। देख जू इनसी ऐसी करू । पकडि लेय जममंदिर पर ।।३१८७।। मेरा भय कछु चित्त न पर्यो चित्त । अपरणा नहीं विधार्या वित्त ।। परजा र ल का मांझि । कर सोच निस वासर साझ ।।३१८८।। पुर की तयार रावण के सोलह सहस्र भूप । मुकुटबंध ते दिपै मनप ।। मारिच मगदत्त प्रमीचंद । हस्त प्रहस्त अने असफंद ॥३१८६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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