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________________ मुनि सभा एवं रनका पपपुराण २५५ इस विष समझावै हसावंत । वाका थाई मही निमित्त ।। क्षत्री जे रण में दई पीठ । कुल कल क लागे तसु दीठ ।।३०३६॥ वा का जाणह इह विध लेग्स । ताका कबहू न करो परेष ।। समझाई ल का सुन्दरी । लिखे कर्स सों टरै न घरी ।।३०३७॥ जंशाक जमानाब सा मुन भी श्रीव ।। तुमारा था असा संयोग । पिता मरण पुत्री संभोग ।।३०३८ । अब तुम सोग करो सव दूरि । सुष भुगतो वांछित भर पूरि ।। भोग मगत सों बीती रात । राम के काम उठया परभात ।।३०३६।। पुण्य पुरुष प्रति ही पली, इक पलमें मई जीति ।। देव षेचर सुस्त्र ते लह, छह ही धरम की रीत ।। ३०४०।। इति श्री पमपुराणे लंकामुग्दरी विवाह विपानक ४७ वां विधानक चौपाई हनुमान का संका में पहुंचना सका में पहुंच्या हणमंत । भभीषण ने जारिण दयावंत ।। अंजनी मुत संदिर में गया । मादर मान बहुत तिण दिया ॥३.४१॥ विभोषण से भेंट बेर बेर पूछ कसलात । बडी बार बतलाया घात ।। कह मभीषण सुरण हणवंत । रावण कू उपनी कुमत्त ।।३०४२॥ सीता कुल्याइया चुराय । परदारा सब को खय जाय । वेस बेस हुवा अपलोक । राजनीत में दोषी होक ।।३०४३।। तीन षंड का रावण राय । खोटी मति इंण करी अन्याय ।। 4से भूप कर्म ए करें । पृथ्वी पर अपजस सिर पर ॥३०॥ सत्तम करम कर बो नीच । उसम मध्यम में क्या बीच ॥ मैं याका सेवक हनूमान । तासे में कही है भान ॥३०४५।। सीता रामचन्द्र कू' देई । इतना जस के तुम लेहु ।। विभीषण का रावण को समझामा भीषण सुणि रावण पं गया । बहुत भांनि कर समझाइया ||३०४६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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