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________________ २८४ पपपुराण तार्थ माया का गढ करया । बहुत सौंज सुभट सौं भरपा ।। कोई देख सक नहीं कोट । जो कोई जोवे ता परि चोंट (३०२३॥ इसनी सुरिंग चाया हगावंत । तोडि पोलि भीतर पैसत ।। बजमुख एवं हनुमाम को वार्ता बजमुख सांभान इह वात । चत्रो को उनी रोम गात ॥३०२४।। दोनु जुध करें बहु भाइ । दोन्या माहि न कोई हटाइ ।। हावंत क्रोध चढं तिण बार । वचमुख झापा तिहां राव ।।३.२५॥ लंका सूदरी वनमष की धिया । पिता जयर सांभलि जुध किया ।। सेनां गोडि हणवंत से लई । मन में क्यार पिता को परं ।।३०२६।। छोड़े विद्या वारण अनंत । झूझे सूरबीर सामन्त ।। देख्या हनुमान का रूप । लंका सुदरी माही भूप ॥३०२७।। लंका सुन्दरी और हनुमान के मध्य प्रेम होना ऐसा रूप पुरुष नहीं क्रोइ | जैसा सु संगम अब होइ ।। उतसौं हणुमंत देखी ए नारि । हाथां सू छोडे हथियार ॥३०२८।। दोनू के रहमि मन भया । लंकासुन्दरी के विमान पे गया । दोनू के मन उपजी प्रीत । भूली सकल युध की रीत ॥३०२६॥ लंका सुदरी वारण पर लिख्या । उलटा छाण हनुमान पै नषा ।। दोन मिलिया कियो विवाह । सुख भोगवै मन उछाह ।।३०३७।। रहसरली सूपुर में जाइ । पंचइंद्री सुख भुगत काय ।। हणुमान बोले तिरा बार । हम जाड हैं ल'का मझार ।।३.३१।। रामचंद्र का करना काम । हम बिदा देख रम भाम।। लका सुन्दरी पूछ बात । सुण्यां सकल पिछला विरतांत ॥३०३२॥ लंकापति का प्रभाव कहिक लंकापति अति बली । तिण रोकी है सगली गली । तिहां देवता सके न पेठ । तुमको होइ है रावण सू भेट ।।३०३३।। पकडे तोकू' यह राखे बांधि । जे तुम चलो मता मन सांघि ।। कहे हणसंल जो रावण लरै । वा का भय हम चिस न परै ।३३०३४।। इण विध जाइ की परवस । कोई न लहै तुम्हारा भेस ॥ हनुमाह द्वारा समभाना लंकासुदरी पिता का सोग । रोवं धणी अर भया वियोग ।।३-३५।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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