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________________ पपुराण जीत्या सक्षमण जै जै थई । पुष्प वृष्टि लक्षमण पर हुई ।। आया रामचंद्र के थान । देख्या सोबत चिता भई प्रान ।।२७६१।। सीता नहीं देखी तिण ठौर । मनमें चिंता व्यापी और ।। रामचंद्र जगामो जाय । पूछी चिता खबर सुभाय ।।२७६२।। रामचंद्र बोले तिण वार । किम ही चोरी सीता नारि ।। के कोई सिंघ गया है खाय । के छल कर ले गया कोई राय ।।२७६३॥ लक्ष्मण का विलाप लक्षमण कर बहोत विलाप । कवण कर्म से भयो मंताप ॥ वन मैं प्राय लिया याश्रम । कोई उदय भयो अशुभ कर्म ।।२७६४॥ इहां व है सीता का हरण । पाब नहीं तो पूरा मरण ।। विद्याधरों का प्रागमन विराधित विद्याधर तिहा प्राय । रामचंद्र के लाग्या पाइ ॥२७६५। रामचंद्र पूछ इह कौंन । इनू कितही ते कीया गौंन ।। लक्षमण नैं महिमा करी घणी । या की कीतं जाई न भणी ।।२७६६।। मो कू कीनी बहुत सहाय । चंद्रोदिस सुत विराधित राय || लक्षमण विद्याधर सूकही । तुम मीता कुटूडो सही ।।२७६७ ।। जो नहीं सीता की सुध होई । हम दोन्या में बचैं न कोइ ।। चारों प्रोर मूत मेचना कनकजटी का रतनजटी पुत्र । ठाम ठाम पठाए दूत बिचित्र 11२७६८।। रतनजटी सुशियां इह बोल । राम राम करि पुकारें रोल ।। रावण के पास जामा तिहाँ जाइ रावण कू घेर 1 पापी ल्याव सीता इण बेर ।। २७६६।। रामचंद्र त्रिभुवन जगदीस । अब तू जाइ नबावो सीस ।। तेरी लंका होइ विणास । इम भास विद्याधर तास ॥२७७०।। तो तू जीवंगा दिन घणे । नाहीं तो पौवत हणें ।। भयो जुझ रावण सुतिहाँ । रावण सोच कर है जिहाँ ।।२७७१।। इसके साथ सेन्या है घणी : मैं एकाकी सुअंसी वणी ।। माया सों सीता मृत करी । रतनजटी इह पिता घरी ।। २७७२।। या कारण प्रायो इस दौर । सीता मुई करि दुख प्रति जोर 11 रावण प्रतें लगाऊं हाथ । वा को बांध ले बा साथ ।।२७७३।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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