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मुर्मि सभा
एवं उनका माधुसरण
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नारिकेल खजुर अंध अ ग्रामली। नींबु सदाफल बेर संव कहजे भली ।। मड पीपल अरु महुवा छांह मौतस जिहां । सकल जाति के रूख देखि बहु सुम्य लहः ।। २६४७।। केसरी अगर सुबास पुष्प चंधन घागे ।। दाख चिरूजी अवर पेड पाडल नगगे ।। पुगी वृक्ष उतंग जायफल के वगणे । धान तरणे बहु खेति तिहा मुदर भने ।। २६४८।।
चौपई कहि इंसने कहां चकोर । बोलें सब्द सुहाबन मोर ।। कहे तीतर कहूँ लब कपोत । सारस क्ग बतक बहोत ।।२६४६।। धूध का गिरध बटेर । सवा सागे पंपी वह हेर ।। जै जै सबद करे' चिहुं वोर । राम नाम सुम रण का सोर ।।२६५०।। दंडक पर्वन तिहा उतंग । मुफा में रहे सिंघ उमंग ।। कहुं चीता कहिं सारंग रीछ । सांभर सूकर गैंडा हीछ ।।२६५१॥ प्रारणा मैसा सुरही गाय । पसु जाति सगला तिह ठाइ ॥ सरवर माहिं कमला का फूल । चलै पवन अति सुख का मूल ।।२६५२॥ नल समीर तिहां गंभीर । गाव सगला सुख सरीर ।। सबल वृक्ष हाल पात । भयो पानंद वन में बहु भांति ।।२६५३।। कीडा कर हंस बन मांहि । झरना झरै निहां सीतल छांह ।। हरवं सकल दिवस धन्य आजि । रामचंद्र प्राए वन माझि ।। २६५४।। बन मोभा देखें प्रति भली । गति दिवस देखें मन रली ।। रंग रंग के दिपै पाखांन । दम किरण उद्योत है भान ।।२६५५।।
फिटक सिला की जोति अनुप । सब ठा सोहै महा स्वरूप ।। वंडक वन की शोभा
ता तलि करावरन बहै । महा मगनि उज्जल जल रहै ॥२६५६।। परवस की झांई जलमांहि । भले वृक्ष तहां सीतल छाह ।। स्वर्ग सुर ससी उडषण पणें । जल में दीसँ' अति सोभा वणे ।।२६५७|| रामचंद्र लखमण पर सीमा । जटा पंषी निज कर पर लीया ।। करि सनान जल क्रीडा करी । नीर उछालं अंजुल भरी ।।२६५८।।