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________________ मुनि सभाचन्द एवं उनका एमपुराण २४७ रथ परि बैठा दोन्यु वीर । रुपलक्षण करि दिपै सरीर ।। कमलोस्दा झरोखे द्वार । वडी नयन याभरण संवार ।।२५४४१ देसभूषण कुल भूषण देखि । यासों कहूं विवाह बिसेष ॥ वे दोन्यू आपस में जिद । नारि रूप दिया में निंद' । २५४५।। उततें भाट प्रावता मिल्या । प्रासीबाद दीया उन भला ॥ क्षेमंकर के कुल पानंद । विमला उदर भए भुविद ।।२६४६।। चिरंजीव व ज्यो तुम सदा । इनका सुजस बखासी मुद्दा ।। कमलोत्सबा का विचार कमलोत्सवा इनकू देखिया । धन्य बह जिन दोड भया ।।२५४७।। प्रेसी सुणी सबै इन बात । सोच कर मनमें दोउ भ्रात ।। सराहा इन मैया की ठौर । हम मनमें पारसी थी और ।।२५४८।। जे इह अनि राषती भाव । नोऊन कहती बहिन का भाव ।। हम तो चित मां प्राण्या था पाप | क्यू उतरंगा इह संताप ॥२५४६।। मन ही मन में बांधे करम | जामवंत किम कर अधरम ।। विग यह जनम धिम् संसार । विषय भाव में रहो मंघियार ।।२५५० ।। अब किण विध मिट सी अपराध । करें तपस्या मन वय साध ।। दोनों भाइयों के वैराग्य भाव फिर पाये जहां माना फ्तिा । वंग तणां करि दोन्यू मना ।।२५५१।। कहै कि हय तुम इह सनबंध । इन्द्रिय विषय पाप का बंध ।। अब तुम हम क् प्राग्या देई । तो हम मुगि पास वन लेहिं ।।२५५२.। माता पिता द्वारा संताप दंपति सुनि मूरछा गति प्राइ । पुत्रां प्रतं कही समझाय ।। तुमारा न देख्या मंगलाचार । तुम दोनों बालक सुकुमार ||२५५३।। करो राज तुम भुगतो सुख । कारज विन कवर। सही ए दुःख ।। चउथै प्राश्रम दिक्षा जोग । अत्र मुगनो संमागे भोग ।।२५५४।। कुमारों का उत्तर एवं वैराग्य लेना बोले अवर संसार असार । व्यापत काल न लागै बार ।। बाल वृद्ध सगला ने काय । काहु की करुणा न कराइ ||२५५५। आया ले मुनिवर 4 गये । लुपे केस दिगंबर भए ।। बारह तप तेरह चारित्र । अठाईस मूल गुण है पवित्र ॥२५५६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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