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________________ २४६ पापुरास तोड व उदर पूरा भई । संन्यासी पं दिव्या लाई ॥ पंच अमनि साधी बहुभाति । मरकरि भया देय को जात ।।२५३०।। प्रगान केतु माम तसु भया । दिन मुदित समेदगिर गया ।। उदित मुक्ति द्वारा निर्धारण प्राप्ति समाधि पर करि स्टे प्राण । पाया स्वर्ग मे देव विमांग ||२५३।। अरिष्ट नगरी प्रिय वन मप । कंचन नामा मारि राना ! दूजी पदमावती अस्तरी । रूपवंत लष्यण गुएभरी ॥२५३२५ दोऊ देन चये अंत पाय । पदमावती गम भए माय ।। प्रथम रत्नरथ चित्ररथ और । रूपवंत सोहै तिण ठार ॥२५३३।। ग्राभा और प्रगनिकेत वृत्त । अनरष नांम रूप बहत ।। राजा सुण्यु धरम व्याख्यान । छह दिन अाच रही परमांन ।।२५३४।। राज भार पुत्र ने दिया । आपण भैम दिगंबर लिया । रस्मरथं श्रीप्रभा सौं ब्याह । राजभोग में कर उछाह ।।२५३५॥ अनरष राजा का मान भंग एवं वैराग्य प्रनरध कर राम सौ बर । मात्र राज प्रथी का खर ।। चित्ररथ मंत्री सौ मत्र विचार । सना जोड कीए जुध भार ।।२५३६।। मान भंग अनरध का होय । भये संन्यासी ग्यांन वियोग ।। काय कष्ट सूसा, जोग । हाडे सब ससारी भोग ।। २५३७।। रत्नरथ चित्ररथ मुनिवर ५ गये । राभिलि धरम जतीसुर भये ।। ईसान स्वर्ग में हुवे देव । मुर बहु करें तिना को सेव ॥२५३८।। बेसभूषण कुलभूषण का जन्म। सिधरत्नपुर क्षेमकरण न रेस । बिमलाराणी पतिव्रता भेष ।। नाके गर्भ स्वर्ग हें चई । सभूषण कुलभूषण भई ॥२५३६।। सागरघोष भूप की साल । विद्यापदि दोउ भए गुणाल ।। पउदह विद्या बहत्तर कला । सर्व विद्या सीखी गुरण भला ॥२५४०।। विप्रसाष दोऊ शिष्य ले जाय । मृत गुण देव आनंझो राइ ।। सागरघोष बहु पायो दान । मंकर कीयो सनमान ।।२५४१ ।। नरपति असा कर विचार । जोवनवत भयो सु कूमार।। रूपवंत नृप को कोइ मुता । ताहि समझि काई कीजे मता । २५.४२।। उहै भूपति को जांच जाइ । ग्रेमी बान विचार राय ।। चमीडा दोऊ कुवर वनक्रीडा चले । ह्य गय रथ पायक बहु भले ॥२५४३।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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