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मुनि सभाचंव एवं उनका पद्मपुराण
बहुत भूपतियां दिक्षा लई । घरम में सुणि निश्चय थई ।। बहू श्रावक का व्रत लिया । दया धरम मांही चित्त दिया ।। २१७०।। फिर गया अजोध्यापुरी भरत मूं मिले बीनती की ॥ कही बात सगली समझाय रुदन करें सुण दुग्ख अधिकाय ।। २१७१ ।।
दशरथ द्वारा रुवन एवं वंराग्य
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॥ २१७४॥
दसरथ करें करम व्यवहार | पुत्र वियोग भयो दुःख अपार ।। करण करम में खोटा किया 1 पुत्रा हैं देश निकाला दिया ॥९९७॥ बहुरि समझिया मन में ध्यान अंसा मोह में भया अयान ॥ कुरण कुण भवका चितको पुत्त । केई पुत्र कलित्र संजुत ॥ २१७३ ।। स्वरगां का सुख के के बार | देवलोक की भुगतो नारि ॥ चिह्न गति का दुख सुख धरणे । देह और सों प्रीत न पुद्गल घरांत घरें सब जण जीव संघाती कहिए कौं पांच चोर हैं काया बीच। विष मय करें करम वित्त नीच ।। २१७५ ।। विषय अभियान मैना हुआ || गाईं प्राण का नाम । श्रही समान इन्द्री सुख जास २२१७६ ।। मोह जेल बंधियो संसार | सूरख मगन द्वयँ निरधार || स्वारय रूपी है जय सार | धरम एक जिय को प्राघार ॥ २१७७।।
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बारह धनुप्रेक्षा दुवै चित्त । श्रतम ब्यान विचारें नित || दसरथ मुनि सा तप करें । चिदानंद लिच चित्र में घरे ।। २१७८ ॥ अपराजिता रोवें दिन रात 1 कैकई मांग करें बहु भाति ।। भरत करें माता का सोच । कहै चन्न देखु माता मन सोच ३।२१७६६।
भरत का राम के पास जाना
उनकू ग्रानि बिठाऊं राज | उन भाग में साधू काज || भरत सत्र ुघ्न अस्व पलांरण | बहुत संग लीवा राजान ३२१८० गये पार बैठा तट ठां ॥
पहुंचे कालिंदी पर जाय
ह्वां तंमार पूछत चले । छठे दिवस राम के मिले ।। २१८१।। उतर दूर भी करें इंडो । विनती तिनसों करें बहुत ॥
ग़वें सत्र ुघन भरत नौर। रामचंद्र बोलें तिएा दौर् ।।२१८२ ।। भरत बीन कर जोटि । तुम प्रभू हो त्रिभुवन सिरमौर । वर बोझ चलें किम बहल हमसू राज चल नहीं यल ॥२९८३३