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________________ पद्मपुराण केई हारे पडे बेसुध । केई मूरख महा कुबुधि ।। केई कथा घरम की चलें । मुणं भेद अस्थी मुख लहैं ।।२१५६।। कई दुखी दलिद्री पडे । ट्टी झुपड़े के मल गिरे ॥ कई पडे माहि बाजार । कई पडे रहैं पइमारिनी सार ॥२१५७।। चोर फिर पर धन हरे । पाहरूवा वा सबद सूरण रै'।। देखे मकल नगर के चिह्न । दुखी सुम्बी देख्ने भिन्न भिन्न ।। २१५८ '। पुह फाटी उग्यो जब भान । बहु सावंत अजोध्या ते प्रान ।। मारग घेर रहें वे प्राय । रामचंद्र जिह्न पंडे आय ।।२१५६।। राजानी का अनुगमन छोडा रथ कौसिल कर लए । भूपति सकल पयादे भए । सस्त्रिया भू मनि घरते पांव । चल्या न जाय थके लिए पांव ।।२१६०।। जोता निबहै पावें घने । कालिंद्री जमुना कहने ।। उछलं लहर मच्छ बहु चलें । गड़गडाट सों जन न हलं ।।२१६१।। सच सह राजा विनती करें। प्रभु हम कसे पार उतरें। तुम तो प्रभुजी उतरो गार । हम कैसे पहुंचे निरधार ।।२१६२।। समको वापिस जाने को कहना रामचन्द्र बोले सुण लोग । तुम स्या मारै सहु विजोग ।। हम तापरा वन बेहरु तारा । करिही कहा हमारे पास ।।२१६३।। तुम फिर जाउ घर प्रापणं । दिन पलटघा मिलिवो प्रापों । रामचंद्र सीता गहि बोह । परि गया तिहां तटनी धांहि ।।२१६४१ बैसा एक रूल तलि जाय । बारि खडा भूपति बिललाइ ॥ देखो असुभ करम का भाय । असा क्या दुख व्याप्या प्राय ।।२१६५11 प्रवर मनुष्य की कीजे कहा ! राम रारीखा इह दुख लहा ।। हम फिर जाहि कर कहा गेह । करि हा चिदानंद सों नेह ।।२१६६।। सब मिल अंसी चितब चित्त । इनु जिन भवन करी जाइ पित्ति ।। श्री जिन मंदिर उज्जल वरण 1 वृष्म प्रसोग दुख के हरण । २१६७।। पूजा करी जिनेस्वर भगत । ऊंचें चढि देख्या सब जगत ।। ठाम ठाम देख्या देहुरे । रतन संभव मुनि तिहां तप करै ।।२१६८।। देइ प्रदिक्षणा पूछे धर्म । अती सरावग का सब मम ।। पार उत्तरि प्राये सब राय । सुण्यो धर्म तहां चित्त लगाय ।।२१६६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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