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________________ मुनि सभाबंद एवं उनका पद्मपुराण कक बीती जीवन बेस दई दिखाई धवले केश || जमके दून दिखाली दई । मेरी याद अकारथ गई ।। १५६७ ।। घरम राह में किया न कुच्छ । अब तो श्राव रही है तुच्छ । देह जाजरी तप क्रिम होइ । श्रव पिछताये अवसर खोय ।।१५६८ | सकति समान किया कुछ जाय। तप र दर्शन करो मन मांहि ।। वृष राजकुमार को गा लघु पुत्र को राजा किया । विमल साध में संजय लिया ।। १५६६ ।। सिकरणी राणी पटखनी । सीलवंत अति सोभावनी || दिन बीते सुख मांहि बहुत। तब इक फिकर आणि पहुंत ।। १६७०। दक्षिण दिश का राजा बली । उन सब भूमि तुमारी दली ॥ व्ह का ऊपर करिये राय । या कारण आयो तुम पोय ।।१६०१ ॥ मेना बहुत भूप संग चली। सुर सुभट सोभैं प्रति वली ॥ नगर राज राणी नैं सोंग | आप चत्या दुरजन गरि कोप ।। १६०२ ।। उत्तर श्री के सुगी नरेस | नधुष बल्या नृप दक्षिण देस || रांणी न कोपी लिवेर ॥१६०३॥ रांणी असी महा विचित् ॥ उरण सब लई अयोध्या घेरि करि संग्राम भया ग्रासल दक्षण साधि नरपति थाइया । राजा को व्यापा जुर ताप । उगजी ज्वाला भयो संताप || नाई देख भेद सब कहै 1 या को कोई जतन न रहे ।। १६०५ ।। रागी बात सुगी श्रति कोपिया ।। १६०४ । । १७७ या का मरण होयगा सही । पंडित वेदों ऐसी कही || राणी नित जिन पूजा करें। पंच नांम का सुमरण करें ।।१६०६ ।। हस्तपालि श्रीया सुभ नीरयासों छिड़को राय सरीर ।। किया मंगोल अधिक सनेह ।। १६०७ ।। दगध रोग की भागी पीर ॥ लेकर जल मंत्री नृप देह सीलवती का लाग्या नीर राजर को सुख उपज्या नया । फेर सुहाग राणी को दिया ।११६०८ ॥ बहुत दिन बीते भोग मभार । स्यौंदास पुत्र ने सौंप्या भार आवरण भए दिगंबर रूप । स्योहारा राज करें तो भूप ।।१६०६ ।। कनकाभा व्यांही अस्तरी । सिघसेन जनम्यां सुभवडी || is का व्रत करें पुनीन । श्रावक करें परम की रीत ।। १६१० ।। स्पोवास द्वारा जीव हिंसा पर प्रतिबन्ध नगर मांहि डुडी फिरवाय जीवबंध को करम काइ ॥ सुशियो हिसा नाम । ता ं लूट लीजिये गांम ।।१६११।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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