________________
कठोर तपस्या
सहदेवी प्रारत में मुई। देही छोडि सिंघणी भई । दोन्यू मुनीस्वर करत बिहार । भवि प्रमोद गये वन मझारि ।।१५८२॥ घणहर करि छायो प्राकास । मुनिवर तिहां रह्या चोमास || वरष मेह मूसलाधार । तिहां मोर कुहकै प्रणपार ।।१५८३।। जल पृथ्वी पर उमडया प्राइ । नंदी नाला घले अधिकाय ।। दोन्यु मुनि परवत पर जाय । देखि सिला बैठे तिण ठाइ ।।१५८०४।।
यार महीने का संचार : असा विकिरा ।। वरष मेह पवन अति चले । इनकी देह न तपते टलं ॥१५८५।। स्याम मुवंग मल पाट देह । इंस मछर तन चूटे एह ॥ बुंद झरै तर बारंबार । बेलि घणी लपटी ज्यों हार ।। १५८६।। उगी दोब देह विपरीत । महा भयानक बन भयभीत ।। देख कातर फार्ट हिया । जिस बनमाहि इनौं तप किया ॥१५८७।। प्रासोज कात्तिक माई रित्त । चंद्रमा ज्योति विराजे प्रति ।। गति चौमासय पूरण योग । साहार निमित्त चित बै नियोग ।।१५८८।। वाही वनमें सिंघणी प्राइ । मुख पसारि प्रा पूछ उठाई ।। भय दायक देख्यां डर होह । ता वन में नावै जन कोइ ।।१५।। सुकुमार साधु सिंघणी नं गह्मा । नलि मारि के पाबां ताल लाहा ।। भर्ष मांस कछु दया न करें । अले स्मंघरणी मुनि ने हग' ।।१५१०।। इह पूरव भव का सनवंध । भुगल्या वर्ग यही कछु बध ।। मुनिवर सुकल घ्यांन मन दीय। । केवलग्यान अंत हिरण भया । १५९१।। सुर लोकांतिक जै करें। सूकुमार मुनीस्कर मुक्त बरै ।। घेही दहन देयता करी । वह सिंधणी तिरण ठांग पी ।।१५६२।। फीतिघर बोले तजि मौन । तेरा वन क्यों कीया गोन ।। सुच्छ प्राव भब तेरी रही । कोष छोडि मन समता गही ॥१५६३।। लियो संन्यास तजे निज प्राण । पाया पहले स्वर्ग विमाण ।।
कीसिंधर सहि केवलग्यांन । धाम प्रकास गये निरवाल ।।१५६४।। चित्रमाला के पुत्रोत्पति-हिरण्यनाभ
विचित्रमाल लिय जनम्यां पूप्त । हिरवनाभ लक्षण संयुक्त ।। जोबन समय विवानी नारि । अहितमती शशि की उणहार ॥१५६५|| राजकरत दिन बीते घने । तिण ठामें एक कारण वणे ।। पारसी विखाव नाई प्राइ 1 श्वेत कोस सिर देख्या राय ||१५६६।।