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मुनि सभाचंच एवं उनका पयपुराण
चौपई रणही बंस बहु भूपति भए । काटि करम शिव पानक गये ।। केई पहुंता स्वर्ग विबांग । केई भया पृथ्वीपति प्राणि ।।१५.१२।। कोई पहच्या नरक मारि। केई पहच्या स्वर्ग विमांग ।। जैसी करणी तैसी गति 1 धर्मध्यान में राखै मति ॥१५१३।। सति समान दान अरु वृत्त । देवशास्त्र गुरु राखें हित्त ।।
च्यारिउं दांन भाव सों देइ । सो ऊंची गति का सुख लेइ ।।१५१४।। इष्वकासो राजा वन्त्रवाह वर्णन
इष्वाक बसी विजय नरेम । भूगते नगर अयोध्या देस ।। हेमचूल रागी पटवणी । मानू कनक कामनी बणी ।।१५१५।। सुन्दामन ता पुत्र जनमिया । कोतवती तसु व्याही त्रिया || प्रथम पुत्र वज्रबाहु भया । दुजा पुरीन्द्र पराक्रमी थया ।।१५१६।। दोन्यू कुमर विद्या बह बढ़े। बन पौरस सू बहते बढ़े। हथनापुर हंसवाहण राय । चूडामणी राणी पटवाय ।।१५१७॥ मनोदया पुत्री ताके भयो । सो वनबाहु कुमर को दई ।। लिख्या लगन साध्या सुभ द्यौस । व्याहण चाल्या नृपं मन हाँस ।।१५१।। पुरों इसो पूछ नव वात । चलोकरण मुनिवर की जात ।। नासा दृष्टि प्रातमध्यान । ताको सोभे भ्यालं म्यांन ।।१५१६।। बसत समि परवत परिजाय । वचवाह हस्ति पहिराय ।। मुनिवर एक तिहा नप करै । जैसे केस सुदर नर धरै ।।१५२०॥ पातमभाव' लगायो जोग । छांडे मकान जानि के भोग ।। तन बाईस परीया सहै । प्रष्ट काम कमिती यहैं ।।१५२१।। ता की अधिक विराज जोनि । निग समान गरिग्रह नहीं होता। दोनू कुमर मराहै पाइ धनि मात्र जे असे भाइ ।।१५२२५ । अज्रबाहु तिहां लाया घ्यांन । देख्या मित्र उश्यसुदर नाम ।। कहै दिम चाही दिक्षा लिया । वैरागभाव मैं ते चित दिया ॥१५२३॥ कंवर भणं तब अधिरज कहा । मनुष्य ही पाल चारिग्र महा ।। उदय सुदर बोल तब मित्त । जै दिक्षा तुम पाणी चित्स ।।१५२४।। में भी संयम त्यों तुम साथ । मेरी प्ररज सुणों प्रभु नाथ ।। दसनी सुनत वसन सब डाली । मन वैराग्य भयो भूपाल ।।१५२५।।