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मुनि सभासद एवं उनका पद्मपुराण
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चले देवता जे जे कर । इन्द्राणी जिगा नर ने हरै ।। माया का बालक उतै राखि । लीया उचाइ दीनता भाखि ।।१४८३।। पति की गोद दिये जिनराय । दरसरण देशि महा सुख पाय ।। बाजे वाजै नाच देव । दसौ दिसापति प्राए सेव ॥१४८४ ।। मेच सुदरसण पांडुक सिला । तिहा महोच्छच कीना भला ॥ करं उघटणा मंगल गीत | धीराचारि की बहु प्रीत ॥१४८५॥ सहस प्रोत्तर इन्द्र ने भरे । और देवता बह कर परे ।। श्री जिया ऊपर डारें आसिा । काजल नयन सहित मुख पान ।।१४८६।। बौंधे कणं वन की गई। कूडल तणी जीति अति हुई ।। प्राभूषण पहराय अनूप । सब सिंगार सोभे रूप ।।१४८७।। अष्ट दरब सू पूजा करी । कर प्रारती विनती करी ।। श्री जिनवर माता में प्राणि । तिहां वार्ज प्रारदि नीसारण ॥१४८६।। इन्द्र घरमांन्द्र सूर ल गये । वररुया रतन पूष्प वरगये ।। तीस हजार वर्ष की प्राय । बीस धनुष की ऊंची काय ॥१४८६।।
वाहैं जोतिगी लगन विचार । मुनिमुखत त्रिमुयन प्राघार ।। मुनिसुकतनाम का जीवन
परिया मांहि बघावा भया । जनम समय बहु धन खरचीया ।।१४६।। वेले संग देव के बाल | क्रीडा कर तक रूप विशाल ।। सात सहस्र अरु बरष पचास । ता पाछ मन भया उल्हास ॥१४६१।। जसोमती ब्याही वर नानि । रूपवंत शशि की उपहारि ।। भोग करत दिन बीते घणे । भयो गरभ जसोमति तणे ॥१४९२।। दक्ष पुष जनभ्या शुभ घडी । पग्य माहि बधाई करी ।। पंद्रह सहस्र वरष करि गज । मृग मृगनी देखे वन मांझ ।।१४६३।। बिजली पडि करि दोन्यू मुवा । ताहि देखि मार विस्मय हुग्रा ।। मन में धरपा धरम सो काज 1 दक्ष पुत्र को दीनों राज ॥१४६४।। सुपरणां सरसी जांसिंग विभूति । मुरलोकांतिक प्राणि पहूंत ।। धन्य धन देव सबद सब करें । प्रमु प्राग शिव सुरका धरै ।।१४६५।। चढे पालकी प्रभु बन लाछ । सिंघ नाम ले लोंच कराह ।। भए विगंवर मातम ध्यान । मुरपति किया चारित्र कल्याण ||१४६६। वैसाख वदी दसमी दिश चित्त । नो वरष रहिया छदमस्त ।। बैसाख वदी नवमी शुभ वार । दारे करम पातिया चार ||१४६७)