SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण १३५ नित प्रति जति लक्ष्मी दें दान । पूजे साधु देव भगवान ॥ बिल से भोग दिन मुख में जाइ । भोजन भले भले नित खाइ ।।१०३०॥ लोभदत्त लक्ष्मी लही, कहवन जाण्या भोग ।। पाप करम करि एकठी, ताथी भयो वियोग ।।१०३१|| चौपई भद्रवत्त सेठ की कथा भद्रदत्त सेठ आधीन । बेर्च वस्तु परिग्रह लीन ॥ दान अदत्ता लेह नहीं पाया । बाहर अभ्यंतर चित खरा ॥१०३२।। एक दिन कंचन राय' प्रधान । तसु दीनार पडया मग थान |1 सव दीनार सेठ जब लही । भद्रदत्त चित्त सोच कही ।। १०३३॥ कंचश पास गया तिरा बार । नप कमी को पूछमार : कहा दुचिते बहुत उदास । मुन कहो करी बिसवासि ।।१०३४।। कंचन कहै मो पास दिनार । राजा मुझे सोंपिया संभारि ।। छुट पडे मारग में जान 1 तास सोच कह' बहु भाति ।।१०३५॥ अन्नपान मो कछु न सुहाय । तिण कारण मै रह्यो मुरझाय ।। वे दीनार सेठ तब दिये । भमो सुख कंचन के हिये ।।१०३६।। भद्रदत्त की प्रस्तुति करें। धन्य सेठ तु लोभ न धरै ।। सगला लोग सरा, लाहि । ऐसी बात' सुरणी नरनाह ।।१०३७॥ दई सेठ ने घणी विभूति । श्रादर मान किया अद्मूत ॥ ताको जस प्रगटयो संसार 1 सत तें लछमी लही अपार ।।१०३८।। सति मारग अंसा भला, ताहि करों सब कोड ।। दोन्युभव जस बिस्तर, बहुरि मोक्ष पद होइ ।।१०३६।। चौपई कुंभकरण द्वारा धर्मोपवेश की प्रार्थना भकरण पूछ कर जोडि । स्वामी भाषो घरम बहोडि ॥ फवरण पुन्य तें लहिये मुक्ति । तैसी मोहि सुरणावो युक्ति ।।१०४011 मनतवीर्य जिरण कहै वखारण । कारह सभा सुणं घरि घ्यान ।। समिकत जे पाल परिचित्त । उत्सम ध्यान विचार नित ॥१०४१५
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy