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________________ पचपुराण कुरी खाइ महादुःख भरं । जहाँ तिहां पायक जिम फिरै ।। सिर पगडी तल धोती बांधि । एक दुपट्टी राख कांप ॥१०१५।। जीरण वस्त्र त्रिया में देय । दान पुन्य कवहीं न करे । राब पुर लोग कृपण कहें ताहि । वह मममें कछुपाएँ नाहिं ।।१०१६।। चारण मुनि पाए तिरा वार । साहणी दौडि करी नमस्कार ।। स्वामी म्हारा पूरघ पाप । छती आथि हम सही संताप ।।१०१७॥ किण प्रकार होसी हम गति । लोभवस के धरमन चित्त ।। अत्र असी विद्या मुझ देहु । तीरथ दरसन सा बारह ।।१०।। तव मुनिवर इक विद्या दई । ताहि सुमर बुधि पाई नई ।। लकलो एक बडो बिस्तार । भीतर ते पोलाइ सार ||१०१६।। विद्या सुमरित स् परि वैठि। तीरथ करगा चाली श्रिय सेठ ।। पैसे नित प्रति तीरथ जाइ । रसन द्वीप पूजै जिण सइ ।।१०२०।। तेनी तेलग दोन्यु लहैं। तेलगि रूस लकहर मैं बडे ।। साहणि चढि पाली माकास । उत्तरं रतन दीप के पास ॥१०२१॥ तेला देख अचंभ भई 1 रतन संकलि गोद भरि लयी ॥ लकडे बीच माइक छिपी । बहुत ज्योति रतनन की दिपी ॥१०२२॥ साहरिण प्राई घरि प्रापणं । तेलण प्रानंदी मन घरणे ।। तेली प्रति दीने सब जाइ । रतन एक गाह विंग ल्याइ ।।१०२३।। साह देख मति अचिरज भयो । सो रतन कहां नै लयो ।। तेला सों पूछ लोभदत्त । मोसी सोच कहो मोहि सत्य ।।१०२४॥ ते यह कहां ते पाया रत्ल । या का मोहि बताबो जत्न ।। तेल भरणं सुरणउ मम रोठ । लकड़े मांहि रहो तुम पंठि ।।१०२।। भई सांझ सेठ तिहां घस्या । अधिक लोम ताके मन वस्या ।। साहणि विद्या सुमरी प्राय । लकडे वैठि दीप को जाय ।।१०२६॥ समुद्र मांझ देख्या सहलीर । इह लकडा साल्पा गहै नीर ।। वा लकडे बति साहरिण गई। हुण्या साह नरक गति भई ।।१०२७।। साहरिण पायी घर प्रापरणे। पूछ वात तर मुनियर भरणे ॥ कहो साहु गयो कि पोर । वाकू मेंदूदू किस ठोर ॥१०२८।। मुनिवर कहैं पिछला वृत्तान्त । डून्या साह लफडे संघात । साहणि कीया मन में सोच । लोभवत का इह नियोग ।।१०२६।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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