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मुनि सभाचन्द एवं उनका पद्मपुराण
सुणे ग्यांन के सुच्छम भेद । तातै होइ करम का छेद ।।
प्रभु मेरे पूरव भव कहौ । कवरण करम ते दुस्ख बहु लहो ।।६५०।। इन्द्र के पूर्व भव
मुनि जंप पिछला विरतात । भ्रम्या लाख चौरागी जात ।। लया जनम भील के गेह । थई पुत्री ता कृष्ठी देह ।।६५१।। मुख विकराल चपटी नाक। चुधी प्रोग्ख मुग्य दीसं बांक 11 जनमत मात पिता मर गये । ऐसे दुःख वा पति में भए ।।५।। होते मरि फिरि देही धरी । मुनि दरसन से राजग्रह परी ।। तप करि पहुँती स्वर्ग विमान । पूरण प्राव भुगती सुर थान ॥५३॥ रतनपुर नगर तिहां गोमटराय । कुदमाणी राणी जर आइ । क्षीर पारा तहां हुई पुत्री । तप करि स्वर्ग लोक थिति करी |18५४ || क्षेत्र विदेह रत्नसंचय नगर । प्रसंमत घर्धन रावल अन॥ गुणवंती राणी पटखनी । पुण्यसैन पुत्र भया बहु गुणी ।। ९५५।। राजा ने दीया पद लिया। राज्यभार सब सुतने दिया ।। गुणसेन सुण्या बहुधर्म । सिथल भए असुभ सह कर्म ॥६५६।। लोड राज दिक्षा लई जाइ । स्वाध्यान तपसों मन ल्याइ ।। दही छोहि प्रहमीन्द्र विमाण । भया इन्द्र पाया सुख प्रान ।।१५७।। वहाँ ते चय रथनुपुर देस | सहस्रार के इंद्र नरेस ॥ पूछ इन्द्र कोइ फर जोडि । प्रभुजी मेरी को बहोडि ।।६५८।।
कोण पाप मान भंग भया । सब सुख कवण करम ते गया ।। रावण द्वारा इन्द्र के माम भंग के कारण
क्यों रावण मुझ दीना दुःख । मूल्या सकल राज का सुरन ।।६५६।। मुनिवर बोले प्रातमग्यांन । जती सुमररण धरि देख्यो ध्यान ।। अरजयपुर नगर अनूप । अगनिवेग विद्याधर मुग ।।६६०|| मानंदमाला पुत्री ता गेह । कोकिल सब्द कंचन सम देह ।। ताक पिता स्वयंवर रच्या । सकल सौज सामग्री सच्या ॥६६१। देस देस के पाए राय । मंडप तल बैठे सब धाय ।। कन्या हाथ लई वरमाल । गुणवंत पेचर गल दीनी डाल 1IEF२||