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________________ सुनि सभाव एवं उनका पद्मपुराण श्री भगवंत चित्त दया दिहाय । सकल ब्राह्मरण दिये छुडाय || चौया षरण जगा सेती हुआ । घोढा वेद एव थापा जुवा || ७६६ ।। सुभूमि चक्रवति किये संधार । तपसी महत्त भये तिहार । तद तें फेर भये उत्पन्न । छोडो इन ज्यो पावो बस ।।७६७३ बामरण छोडि दिया ततकाल । विनयवंत बोले मस्त भूपाल ।। रावण का कनक प्रभा से विवाह कनक प्रभा पुत्री गुएएमई । रावण प्रति विवाह कर दई ७६८|| एक वरस इस वीत्या ठाम । राजा मरुत ने सुख के भाव ॥ कनकप्रभा के भई प्रसूत । चित्रा पृथ्वी लक्षण संयुक्त ।।७६६ ।। हेमांचल गिर रावण गया। भूपति सकल प्राय करि नया ॥। हैमांचल परवत रमणिक । ता विग भूमि खरी सोभनीक || ७७०|| महल करण की इछा करी । सब मिल समझायें मंतरी || ह्या के रहें परदेसी नाम । नाम लंका है पुरखों की ठांम ।।७७१।। ह्या के बसें न कारज होइ ॥ । देखें रूप सराई भला || ७७२ ॥ उनही लोक जाणै सब कोइ तब फिर को मारग को चत्या राजगिर नगर में निकम आय देखें रूप रावण बहु भाइ 1 कोई अदारी देखे नारि । भाषि झरोखा ऊबी द्वार ७७३। कोई गली कई बाजार । सबै किये सोलह सिगार || पुरुष रूप देखें सब लोग बहुरि सराहे पुण्य संजोग ।। ७७४ ।। जिणपद नगर जैसे नरेस । रावण ने जीते सब देस ॥ मिल्या मगाव प्रस्तुति करी । पुत्री व्याट्ट दई सुंदरी ॥७७॥ रावण मनमें बहुत उल्हास प्रजा सुखी इम देह असीम देखें नमर सकल चिहुं पास || शवरप जीवो कोडि वरीस ।।७७६ । बहुत दिवस बीते इस गाँव सकस लोग मन भया उढा । जे बहुरो चसे आपण ठाम || बड़े रहते बोभास ||35:1 उदर पूरा कर वे लोग । यो के भयो गयो वियोग | प्रसाद बढी दोषज श्री घडी की मन इक्षा बरी १७७८ ॥ ११५
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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