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मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण
बैंस नर कोंब नहिं डार । बहुरि कर नहीं अंगीकार ।। जे जोगीस्वर माया गहै । परिग्रह बहुत लीयां ले रहै ।।७१३॥ जिसका जनम प्रकारथ जाइ । अंतकाल पीने पछिताम ।। सिरणा मात्र न परिग्रह लेह । काकी सब कोई उपमा देइ ।।७१४।। जे तुम जोग करो धन तजो । माया छोडि जिनेस्वर भजो ।। ब्रह्म रुचि का संसप मिट गया । स्त्री त्याग दिगंबर भया ३७१५। परमा कहै मोहि विक्षा देहु । जैन धरम पालों परि नेहु ॥ बोले मुनिवर ग्यांन विचार । गर्भवती नाह ले दीक्षा सार ।।७१६॥
तर वह स्त्री बन में ही रही । दसपास पूरण निरमई ।।
नारक का जन्म
भया पुत्र नारद रिष मुनी । माता मनमें सौच घनी ।।७१७।। मैं दिक्षा लेकर तप करों। अवर न कच्छ चित्त में धरौं । मा का निमित्त हाय सो सही । मेरे माया मोह कल नहीं ।।१८।। पानां मांहि लपेट्या पुत्र । तरु तलि म्हेल्या लक्षण संयुक्त ।। इन्द्र मालिनी प्रजिका पं जाय । लीन्ही दीक्षा मन बच काय ॥७१६] वहाँ बालक नित वधै पुनीत । पुन्या के कछु होय न पित्त । पुन्य रिक्षां कर सब कोइ । अगले पुण्य सहाई होम ।।७२०।। जंबक देव जात हो चल्या । थक्या विमारण न हात हल्या ॥ अवधि विचार सुर मत माहिं । नारद मुनि हैं या वन ठांहि ।।७२१।। देव आय करि लिया उठाय । विजयाद्ध पहुंचाया जाय ।।
गुफा बीच ले राष्या वाल । देव करें ताकी प्रतिपाल ||७२२।। नारव का जीवन
विद्या पढि पारंगत भया । वृहस्पति का सा लक्षण लिया ।।
आकास गांमनी विद्या पाइ । भीड देष करि राजगिर जाद॥७२३॥ मनमें सोष करवि प्रापणं । इनमें लोग मिल क्यों धणे ।। कोण परवया मगर मझार । भीड़ जुडो क्यों इतनी बार ॥७२४।।