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पर्धपुराज
राजा मुंह देखी जो करै । नरक निगोद सदा दुख भरै ।। परवत द्वारा सन्यास
परवत ने अति वढ्या कलंक । छोड़घा नगर लोक की संक ।।७०१॥ संन्यासी पे दिक्षा अई जाय । पंच अग्नि साध मन लाय ।। देही छोडि हुवो वह देव । अवधि यिचार पाप के भेद ।।७०२१। पोरस बरस की देही करी । कंध जनेऊ धोती परी ।। गोपीचन्दन वा दस तिलक । राने नयण सो भयो पलक ।।७.३॥ पोथी को गिर जटा लग्नास । असा धरा देव में भाव ॥ मेरा मुखतं निकली बात । मैं अब कर जगत विख्यात ।।७०४।। विप्र संन्यासी वेद पढाई । वह विध प्रकट कर सब आई ॥ पाप भेद भण जे विन । पाप वुधि में भए विचित्र ॥७०५॥
माक्त राज
संवत रिविस्वर राजगिरि का । राजा मरुत समोध्या आई ।। कहींक जज्ञ करो तुम एक । वडा रचाउ गुगल अनेक ।।७०६।। सकल जाति के प्राणों जीय । रालो बांधि उणां की ग्रीव !! मोडा खाडा खणवो बडा। तिहां उनने हीमै भरि षडा ।। ७७७।। वहै जीव पावैगे सुर लोक । होसी जस तुम नही हो मोक्ष ।। होम जज्ञ विधि राजा वी । दस देस ने दोन्ही चिठी ।।७।। सव कुटंध वाभरण सब चसे । देस देस के भूपति मिले ।।
जज की ठाम पहुंते प्राय | च्यारों वेद पढ़ें तिहिं ठाय ||७०६॥ नारद कथा
श्रेणिक पर्छ नारद की कथा । इसका पारण माता पिता ।। ब्रह्मरूचि ब्राह्मण परमातिरी । संन्यासी की दिक्षा धरी ॥१॥ दंपति पंच अगनि करि जोग ! ताबई मान मनका भोग | कंद सूल का करें अहार । माई गरभ थिति परमा नारि १७११६॥ मुनिवर तत्र पाई निकल । देख्ने दंपति जप तप तिहाँ करें। मुनिवर वात धरम की कही । जन दोन्यां मिस जिय में धरी।७१२॥