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मुनि सभाचन्द एवं उनका पपपुराण
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दसानन विमान इक रच्या । नग तिणं उरणहार संस्था ।। मदिर कनक मई सब किये। बंदनमाल रतन भय हिये ।।३६२॥ का सिंहास] प्रा . सुदंब गार बलं ।। मन कुमर शुभ रच्या विमान । भभीषण है सबारचा आन ।।३६३।। चर्ड विमान अपणे पापरणे । दक्षिण दिस नप साथे घने ।। देस देस के भूपति मिले । प्रांण मनाय विजयारध चले ॥३६॥ मारिग माहि पूजि सुमेर । चैत्याले देले बहु फेर ।। ऊपर धुजा बहो फहराय । रतनबिंव जिए का तिण ठाय ।।३६५।। सुमाली सेती फर प्रसन्न । दोउ वर जोडि बीन दशामन ।। इण नगरी का भाषो नाम । चत्याल कब ते इस शेम ॥३६६॥ मुमाली मूपति ब्योरा कहै । हरिषेण चकी छहर्षड लहै ।।
उन श्री जिनके मंदिर किये । छत्री कलस रतन जड दिये ।।३६७।। हरिषेण पकवत्ति की कपा
हरषेन की सूनु अब बात । उप जिरा भवण किये किरण भांत ।। कंपिला नगरी सिध्वज राय । विप्रा राखी सबै जिण पाय ॥३६८।। ताके गर्भ भया हरषेण । वाक भए हुना सुख चन ।। राणी दस लक्षण व्रत कर 1 पुन्यो दिन चाहै रथ फिर ॥३६॥ लक्ष्मी सोकि पति सौं बीन । मिथ्या धरम देव नये ।। मेरा रथ पहले नीकल । ता पाछै वाका रथ चल ।।३७०।। राणी के मन व्यापा सोग । छोडे अन्नपांन रस भोग ।। हरिषेण माता दिग गया । सब अतांत रथ का पूछिया ।।३७१।। तुम हो क्यों माता प्रणमणी। रथ पूजा सामग्री दणी ॥ कही पुत्रस्यों सब समझाय । सुनि हरिषेन पनीनी काय ३७२।। जो अब कहीं पिता सौ छैन । वर्षा उपाधिर होय कुचन ।। उठ्या कुमर गया उद्यान | सब वन दीग अति भय वान ।।३७३|| अजगर सर्प सिंह तिहां रहैं । कोई मनुष तहां भूलि न जहै ।। पुण्यवंत चित भय नवि धरै । वनमें कुमर अकेला फिरै ।।३७४।। गिरि ऊपरि संन्यासी रहै । स्यों कुटंब भेष तप गहे ।। पंच प्रगनि तिहां साधै धने । रूपवती पुत्री तिह तने ॥३७५।।