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जर तु जीव की रिक्षा करें। जती होय तो काल न टरं ॥ जो तू अपने जीव तें डरें। तो तु सेव हमारी करें | 1३४६॥ लंका हम कां तु जो देह । तो छह वर्ष तुम्हारी देह ||
इसलिन द्वारा युद्ध करना
जो कछु बल पौष मन घरी । तो संभालि फिरि हमलों लरो ।। ३५०।। करि माडी रार ।।
इतनी सुनत गहुँ हथियार । सनमुख दसानन गदा लोन्ही हाथ रथ फेरचा तब लंका हाथ ||३५१० धनदत्त विद्याधर आया दौडि । गदा चक्र धारण की भीड | दसानन फिरि कोने घाउ । दसानन बज्र कीया दाउ ॥ ३५२।। विद्याधर ने सिर सो हया । रथ तें गिरधा पुत्र ले गया || वैद्य बुलायो कीया जतन । घाव सिबा कहा कठिन || २५३ ।। सेवा करें पुत्र सब प्रांय से घाव अरु मलम लगाय || वैश्रवतें देखें चहूं घोर पडी लोभ हो सगली ठौर || ३५४ ||
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सेन्या सकल का भयान उपसम भाव उरमाहीं धरं । जिशावर चरण सर संभरें ।। ३५५ ।। या संसार अचल कछु नाहि । राजभोग जिम बादल छांह ||
पद्मपुराण
जिस कारण वांधे सहू पाप । चनुंगति मांहि सौ संताप ।। ३५६|| इन्द्री सुख के कारण जीव 1 बहु अपराध चढाई ग्रीय ।। बिना काज इतना जिय मरें | किये करम टारे नहीं टरें ||३५७।। अवन द्वारा दिगम्बर दीक्षा ग्रहण
लंका राज वसानन दिया । वैश्रवन भेष दिगंबर लिया || बारह विध तप उत्तम ध्यान । तेरह विध चारित्र विनां ।। २४८ ॥
तन बाईस परिसा सहै । भ्रष्ट करम निमाही दहे ॥ सारित रद्र ध्यांन करि दूरि । घरम सकल चित्त राखे पूरि ।। ३५६॥ केवलग्यांन भया तिह घडी । सुरलोकांतिक महिमां करी ॥ पायो सिनयानक कल्यांन ॥ ३६० ॥ ॥
कादि कर्म पहुंच्या निश्वान
सुमाली द्वारा पुनः लंका की प्राप्ति
सुमाली बैठा लंका राज । भया सकल बांष्टित काज ॥
ए सब कंबर करें मानंद समरण पूजा करें जिणंद ।। ३६१ ।।