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________________ ७२ पद्मपुरास जागी जिया हुआ परभात । पति सों जांय सुरपाई बात || सुपिने सांभलि भया उल्हास विषनां तुम मन पूर मास ।। १८२ ।। होइसी पुत्र तीन गुणवंत तीन खंड के पति सोभन्त || सुनि प्रिय बचन प्रधिक सुख पाय । अंचल गांठ दई बहु भाइ ।। १८३।। प्रथम स्वर्गं तें सुर इक चया । आइ गर्म स्थिति वासा लया || मनमै गर्व करें कैकसी | प्रिय सु वचन कहे करि हंसी ।। १८४ ।। हम सेवें श्री जिके पाय । हम मन रहे क्रोष किहि भाय ॥ दंपति गए के पास १८५ स्वामी कहाँ घरम समझाय । चित्त हमारा किम गरवाय || बोले मुनिवर ग्यान बिचार । प्रतिकेशर तुम गर्भ अवतार ।। १८६३३ वासम बली न दूजा और सूचर बेचर सेव कर जोडि || दोय पुत्र होसी ताप। केवल पाच मुकति में गर्भं ॥ १६७॥ मुनि वाणी सुनि आया गेह । श्रदभुत सुख पाया ता गेह || जब बीते पूरे नव मास । पुत्र जनम का भया प्रकास ।। १६८ ।। दीन दुखित नें दीना दान सव ही का राज्या सनमान ॥ या वाजित्र नाना भांति । सवद सुहावने लागे गात ।।१८६॥ रावण का जन्म दुतिया शशि जु वर्षं कुमार । रावण रूप रवि तेज अपार ॥ 1 दुजा कुंभकरण सुत भया । चंद्र नखा रूप गुंण धीया ।।१०।। तीजा भभीषन हुना कुमार मानू पूनम राशि उनहार ॥ दशानन कुमर महाबलवन्त । इन्द्र भूप खोटे चिह्न जीवंत ।। १६१। सुपने में गज दाब प्राय जाग्या कसु देखें नहि राय || दामिन डाय के गिरै । लोथि आय धरणी में परं ।। १६२॥ और घणां हृ उलकापात 1 ए चिह्न इन्द्र देखें दिन रात ।। कुमरे इक दिन डबा उघारि । काढ लिया विद्या का हार ।। १३३ ।। पहरी तुरत गले में माल | दरसण सोभरण लगे विसाल || इह था कुल विद्या का घरा । पूजा करें ते छूते हरा ।। १६४ ।। पुनित पहिरथा गल मांहि । पुण्य प्रसाद भय व्यापै नोहि ॥ केसी सूती महल सत खनं । सेज्या तं सुख बिलर्स प्रति घने ।। १६५ ।। दसानन कुअर सौबे था पास। वदनदंति जोति परकास 11 चंद्रमां की सोभात क्रांति दसन जोति बालक बहु मांति ||१६||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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