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संरक्षक की कलम से श्री महावीर ग्रंथ अकादमी के अष्टम पुष्प "मुनि समापन्द एवं उनका पद्मपुराण' को पाठकों के हाथों में देते हुए मुझे अतीव प्रसन्नता है । सप्तम पुष्प के प्रकाशन के छह महिने पश्चात प्रष्टम पुष्प का प्रकाशित होना निश्चय ही स्वागत योग्य है । प्रस्तुत पुष्प में प्रथम बार हिन्दी भाषा में निबद्ध पद्मपुराण का पूरा पाठ एवं उसका सम्यक् अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। पदमपुराण जैन समाज में अत्यधिक लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है । इसलिये प्राकृत, अपना, संस्कृत एवं हिन्दी सभी भाषानों में विभिन्न प्राचार्यों ने पुराण ग्रंथ निबद्ध किये हैं। प्रस्तुत पद्मपुराण जैन सन्त मुनि सभाचन्द की कृति है जिसको खोज निकालने का श्रेय डा. कस्तुरचन्द कासलीवाल की है। जिन्होंने इसे सम्यक रूप से सम्पादित करके प्रकाशित भी किया है । वस्तुतः डा कासलीवाल ने अब तक पचासों प्रजात एवं अचचित ग्रंथों को प्रकाश में समा जो वकारी कार्य किया है उसके सम्पूर्ण साहित्यिक समाज उनका सदैव प्राभारी रहेगा।
प्रकादमी की हिन्दी के जन कवियों को उनका ऐतिहासिक अध्ययन के प्राधार पर बीस भागों में प्रकाशित करने की योजना एक ऐमी योजना है जिसकी किसी से तुलना नहीं जा सकती। जन कवियों द्वारा निबद्ध हिन्दी का विशाल साहित्य है जिसका प्रता पता पाना भी दुष्कर कार्य है। प्रारम्भ में जब डा० कासलीवाल ने मुझे अकादमी का परिचय कराया मथा अपनी योजना रखी तो मुझे स्वयं को विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें इतनी सफलता मिल जावेगी और एक के पश्चात् दूसरा भाग प्रकासित होता रहेगा लेकिन जब अष्टम भाग पर दो शब्द मुझसे लिखने के लिये कहा गया तो स्वत: ही मन प्रसन्नता से भर गया । वास्तव में जैसा कि गत १५-२० वपों से मैने डा• कासलीवाल को देखा है उन्हें एक समर्पित सेवाभावी लेखक एवं सम्पादक के रूप में पाया है। साहित्य सेवा एवं इतिहास की खोज ही उनके जीवन का एक मात्र मिशन है जिसका मूर्त रूप प्रव तक प्रकाशित उनकी ५० से भी अधिक पुस्तकें एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकागित उनके सैकड़ों खोज पूगई लेखों में देखा जा सकता है ।
डा. कासलीवाल द्वारा स्थापित थी महावीर नय अकादमी का संरक्षक बनने में मुझे प्रत्यधिक प्रसन्नता है। मैं चाहता हूं कि अकादमी द्वारा जैन हिन्दी वृति यों को 20 मागों में प्रकाशित करने के पश्चात अथवा उसके पूर्व ही बन