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________________ मूलाराधना ९५८ अर्थ -- सहसा निक्षेपाधिकरण अनाभोग निक्षेपाधिकरण, दुःप्रमृष्ट निक्षेपाधिकरण और अमत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरण ऐसे निक्षेपाधिकरणके चार भेद हैं. सहसा निक्षेपाधिकरण -- पिंछी, कमंडलु वगैरह उपकरण, पुस्तकादिक शरीर और शरीरका मल इनको भयसे सहसा जलदी फेक देना, रखना किसी कार्यमें तत्पर होनेसे अथवा त्वरासे पिंछी कमंडल्वादिक पदार्थ जब जमीन पर रक्खे जाते हैं तब पदकाय जीवोंको बाधा देनेमें आधाररूप होते हैं. अर्थात् इन पदार्थोंसे जीव को बाधा पहुंचती है. स्वरा नहीं होनेपर भी जीव हैं या नहीं हैं इसका विचार न करके, देख भाल किये विनाही उपकरणादिक जमीनपर रखना, फेकना उसको अनाभोग निक्षेशाधिकरण कहते हैं. उपकरणादिक वस्तु बिना साफसूफ किये हीं जमीनपर रख देना अथवा जिसपर उपकरणादिक रखने जाते हैं उसको अर्थात् चौकी जमीन वगैरहको अच्छी तरह से साफ बफ न करना इनको दुष्प्रमुष्टनिक्षेपाधि करण कहते है. साफसूफ करने पर जीव हैं अथवा नहीं है यह देखें fear उपकरणादिक रखना अप्रत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरण है. अब निर्वर्तनाधिकरण के भेद कहते हैं— शरीरको असावधानतापूर्वक प्रवृत्ति करना दुःप्रयुक्त कहा जाता है ऐसा दुःप्रयुक्त शरीर हिंसाका उपकरण बन जाता है इस वास्ते इसको देह निर्वर्तनाधिकरण कहते हैं. जीव बाधाको कारण ऐसे छिद्रसहित उपकरण वनाना इसको भी निर्वर्तनाधिकरण कहते हैं जैसे कांजी वगैरह रक्खे हुए पात्रमें जन्तु प्रवेश कर मर जाते हैं, संजोयणमुत्रकरणाणं च तहा पाणभोयणाणं च ॥ दुणिसिठ्ठा मणचिकाया भेदा णिसम्गस्स ॥ ८१५ ॥ आहारोपधिभेदेन द्विधा संयोजनं मतम् ॥ दुःस्पृष्टाः स्वान्तवाक्काया निसर्गस्त्रिविधो मतः ॥ ८४१ ॥ विजयोध्या -- संजोजणमुखकरणानं उपकरणानां पिच्छादीनां अन्योन्येन संयोजना शीतस्पर्शस्य पुस्तकस्य कमंडल्यादेव भातपादितेन पिच्छेन प्रमार्जनं इत्यादिकं सहा तथा । पाणमोजणाणं च पानभोजनयोश्व पानेन पानं, आश्वास: ६ ९५८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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