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________________ मूलागधना आश्वास यद्यपि मैं मिथ्यात्वयुक्त है तो भी मैने दुर्धर चारित्र का पालन किया है इसलिये यह दीर्घ संसारसे मेरा रक्षण करेगा ऐसी आशा नहीं करनी चाहिये. ऐसा आशय दिखाते हैं अर्थ-गीरसहित कटुक तूंबीमें डाला हुआ दूध कडु होजाता है, अर्थात् उसका मधुरपना सब नष्ट होता है. परंतु शुद्ध अर्थात् गीररहित तूंबीमें रक्खा हुआ दूध कडु होता नहीं. वह मधुर और सुगंधित रहता है. तह मिच्छत्तकडुगिदे जीवे तवणाणचरणबिरियाणि ॥ णासात बतमिच्छत्ताम्म य सफलाणि जायंति ।। ७३४ ॥ नपोज्ञानचरित्राणि समिथ्यात्वे तथांगिनि ।। नश्यति बांतमिथ्यात्वे जायन्ते फलवन्ति च ।। ७६२ ।। विविधदषणकारि कुदर्शनं लघु विमुच्य कुमित्रमिवात्तमाः ॥ सकलधर्मविधायि मुदर्शनं सुविभजति सुमित्रमिवाशनम् ।। ७६३ ।। इति मिथ्यान्वापोहनम् ॥ विजयोदया- तह तथा । मिकहतकांगदे मिथ्यात्येन कदृछते जीये । तवणाणचरणविरियाणि नो, शान,चारित्र: वीर्यमित्येतानि णासंति नश्यन्ति । सम्यक्स्वरूपविनाशात् । समीचीन, तपो,शान, घरणं, बीयनिगृहनं च मुफ्त्युपायो न तपःप्रभूतिमात्र । सा च सम्यश्रद्धावलेनैव नान्यथा । वंतमिच्छम्मि निरस्तमिथ्यात्वे जीधे सफलानि फलसमन्वितानि तपःप्रभृतीनि । जायन्ति जायन्ते । किं तपसः फलं? अभ्युदयसुखं, निःश्रेयससुखं वा। मिच्छत्तस्स य बमणं इत्ये. तव्याख्यातं । मिच्छत्त। मूलारा--णासंति नश्यन्ति । सम्यकस्वरूपविनाशात् ॥ वंतमिच्छत्तम्मि निरस्तमिथ्यात्वजीवे । सफलाणि अभ्युदग्गनिःश्रेयससुखकराणि | इति मिथ्यात्वत्रमनम् ।। ___ अर्थ-वैसे मिथ्यात्वसे विपरीत रुचि अर्थात् विपरीत श्रद्धानी बने हुये इस जीवमें तप, ज्ञान, चारित्र और वीर्य ये गुण नष्ट होते हैं. अर्थात मिथ्यात्वरहित तप, ज्ञान, चारित्र और बीर्य ये मुक्ती के उपाय है परंतु एकेक तपादिक मुक्तीके उपाय नहीं. जब सम्बग्दर्शनकी प्राप्ति होती है तब तपादिकमें सम्यकपना आता है. इसके अभावसे तपादिकोंमें सम्यक्पना आ नहीं सकता. मिथ्यात्वका त्याग जिसने किया है ऐसे जीवमें-सम्य
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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