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________________ मूलारावना ८९७ विजयोच्या मिस्स व वमण मिध्यात्वस्य वमनं । सम्मले भावणा तत्वश्रद्धाने असकृतिः । परा उत्कृष्ण भक्तिः । भावणमोक्काररवी नमस्कारो द्विविधः द्रव्यनमस्कारो भावनमस्कारः । नमस्तस्मै इत्यादि शब्दोच्चारणं, सांगावनतिः कृतांजलिता चयनमस्कारः ॥ नमस्कर्तव्यानां गुणानुरागो भावनमस्कारस्तत्र रतिः ॥ णाणुवयोगं श्रुतज्ञानोपयोगं च सदा कुणसु कुर्विति ॥ सूत्रमिदं ॥ तामेवानुशिष्ट विशेषेणोदिशति मूलारा - यमणं त्यागं । भाषणा असकृद्वृत्तिं । भक्ती भक्ति | मक्रमादईदादिष्वेष भावणमोकाररदी नमस्करणीयादादिगुणानुरागलक्षणे भाषणामे आसाकं । णाणुवओगं श्रुतज्ञानपरिणतिं ॥ अर्थ - हे क्षपक ! तू सदा मिध्यावका वमन कर, अर्थात् मिथ्यात्वका त्याग कर और सम्यग्दर्शन में हमेशा प्रवृत्ति कर. अर्हदादि परमेष्ठिओं में उत्कृष्ट भक्ति कर. भावनमस्कार में आसक्त होकर हमेशा ज्ञानोपयोग में तत्पर हो. यह गाथार्थ हुआ. गाथा मावनमस्कार शब्द है. नमस्कारके भावनमस्कार और द्रव्यनमस्कार ऐसे दो भेद हैं. 'नम स्तस्मै जिनाय ' ' श्रीजिनेश्वरको नमस्कार हो ' ऐसा मुखसे कहना, मस्तक नम्र करना, हाथ जोडना यह द्रव्यनमस्कार है, जिनको नमस्कार करना योग्य हैं ऐसे व्यक्तिओं के गुणोंपर अनुराग करना यह मायनमस्कार है. इस भावनमस्कारमें उद्युक्त रहनेके लिये आचार्यने इस गाथामें क्षपककी प्रेरणा की है. तथा ज्ञानोपयोग में अर्थात् श्रुतज्ञानमें परिणति कर ऐसा क्षपकको कहते हैं. पंचमहव्वयरखा कोहचउक्करस णिग्गहं परमं ॥ दुइतिंदियविजयं दुविहतवे उज्जमं कुमह ॥ ७२३ || मुने! महावनं रक्ष कुरु कोपादिनिग्रहम् ॥ पीकनिर्जयं द्वेषा तपोमार्गे कुरुश्रमम् ॥ ७५२ ।। विजयोदया — पंचमदायरा पंचानां महावतानां रक्षां । कोइचउकस्स रोवचतुष्कस्य । णिग्राहं निग्रहं । परमं प्रकृष्टं दुतिदियविजयं दुहतेन्द्रियविजयं । दुविध द्विप्रकारे तपसि । उज्जमं उद्योगं । कुणसु कुरु ॥ भावार ६ ૮૦
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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