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मूलाराधनाः
देव
हैं वे यदि क्षपक क्रमसे न कहेगा तो अर्थात् सूक्ष्म और स्थूल अपराधोंका कथन नहीं करेगा तो प्रायश्चित्त शा स्रके जाता आचार्य उसको प्रायश्रित नहीं देते हैं. इस विश्व आगम में ऐसा कहा है
जो अमावसे आलोचना करते हैं ऐसे गुरु प्रायश्चित देने योग्य हैं. और जिनके विषय में शंका उत्पन्न हुई हो उनकी प्राधिन आचार्य नहीं देते हैं. इससे यह सिद्ध हुआ कि सर्व अतिचार निवेदन करनेवाले में ही ऋजुता रहती हैं. उसको ही प्रायश्चित देना योग्य है.
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पडिसेवणादिचारे जदि आजपदि जहाक्रमं सव्वे ॥ कुति तो सोधि आगमववहारिणो तस्स ।। ६२१ ॥ निःशेोि नशन कुन
व्यवहारविशारदाः ॥ ६४३ ।।
गाथा ।
यथावदोषादो प्रतियोगान
मूलारा--पष्टम्
अर्थ -यदि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आश्रय से हुए संपूर्ण दोष क्षपक अनुक्रमसे कहूंगा तो प्रायविदानकुशल आचार्य उसको प्रायश्चित देते हैं.
दामियाना
के कर्तव्यमय
समं
चिम्म छेदसुहाग राणी से !!
तो आगाज करेदि सुते अत्थे य ।। ६२२ ॥ सम्यगालोच नेन सूत्रं मीमांसते गणी ॥ अनालोचे न कुर्वन्ति महान्तः कांचन क्रियाम् ॥ ६४४ ॥
कथयति
आश्वास
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