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मूलाराधना
आयाम
हयाधितः शल्यं मोपो मालाकारो राजकार्य चैतानि पंच यथा त्रिपच्छयन्ते नया आलोचना मनी यका चति ज्ञातुं विपणन्या । बदि वारत्रयमध्येकरूपेण वनि तदा यी पाश्चिमादी अन्दाना पायन दाना योग्येत्युपदेष्टुनाह -
मूलार--- मगदुरेत्यादि । तिमवुत्तो नीनारान । गागामालोचनायामातुरादय: पंच आहरण दृष्टान्ता भवन्ति इति संबंधः । तत्रातुरः श्रिः पृच्छयते बैंछन कि भुक्तं कीदृशी च रोगप्रवृत्तिरिति । तथा शल्यं त्रिः प्रत्यंत अन्न से कटकादिरिनि । तथा मोप द्रव्यापहार फिर चोर-गतिमिति विना किचन । नथा मालाकारोऽवित्र गुह यते । कियन्मुल्या तब पुष्पमालेति । तथा राज्ञा आज्ञापितं कार्य
वियते किमेवं करिष्यामीति । एव मालोचनापि त्रिः परीक्ष्यसे कीडशोऽपराधस्ते पुनः कथयति ।
सरल आलोचना अथवा वक्र आलोचना कैसी समझना ! जिसके ऊपर प्रायश्चित्त देना न देना अवलं. वित है । इस प्रश्नपर आचार्य उत्तर देते हैं.
अर्थ-रोगीको वैद्य तीन बार पूछते हैं:-तुमने क्या खाया है ? तुम कैसी प्रति करते थे? और तुमारे रोगका क्या हाल है। शरीरमें यदि शस्त्र अथवा कांटेका अग्रभाग घुसनेपर यहां ही काटा घुस गया है ना? अब व्रण अच्छा हुवा है ना? ऐसा तीन चार पूंछते हैं. किसीके यहां चोरी होगई हो तो तुझारा चोर क्या क्या माल लूटकर ले गये हैं ऐसे तीन बार पूंछते हैं. मालाकारको भी तुह्मारी इस पुष्पमालाकी क्या कीमत है ? इस प्रकार तीन पार पूछते है. राजकायेके लिए भी ऐसा ही तीन बार पूछते हैं अर्थात यह कार्य में कर क्या? 1) उसी प्रकार आलोचना वक्रतास या सरलपनासे की गई है इसको जानने के लिये तुमारे अपराध कैसे हैं पुनः कहो ऐसा तीन बार भी उसने एकरूपसे ही अपराधोंका कथन किया तो समझना चाहिये कि इसकी आलोचना सरला है यदि वह भिन्न भिन्न प्रकारसे कहेगा तो इसकी आलोचनामें मायाचार है ऐसा समझना चाहिये.
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पडिसेवणातिचारे जदि णो जंपदि जधाकम सव्वे ॥ ण करोति तदो सुईि आगमववहारिणो तस्स ॥ ६१९ ॥