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________________ मूलाराधना आथाम ८१८ र्यका सेवन करके अचित्तका सेवन किया ऐसा कहना. अचित्तका सेवन कर मरिचका सेवन किया ऐसा कहना. वसतिका कोई कृत्य किया हो तो मैंने वह कार्य रास्ते में किया ऐसा कहना मुभिक्षमें किया हुआ कृत्य दुर्भिक्षमें कियाथा ऐसा बोलना. दिनमें कोई कृत्य करनेपरभी मैने रातमें अमुक कार्य किया था ऐसा बोलना. अकषायभावसे किये हुए कृत्यको तीत्र परिणामसे किया था ऐसा घोलना. इन दोषांकी आलोचना करनी चाहिये, आचार्य के पास आलोचना करने पर आचार्य प्रायश्चित्त देने के पूर्व ही स्वयं यह प्रायश्चित्त मैने लिया है ऐसा कहकर स्वयं पानांश्चन लता है उसको स्वयं शोधक कहते है. स्वयं मैंने ऐसी शुद्धि की है ऐसा कथन करना, इस रीती दर्शदिके द्वारा अतिचार होते हैं वे सब कहने चाहिये. और अपने किये हुए अतिचा के क्रमका उल्लंघन नहीं करना चाहिये. FATAadesSATERISTMAAYBOSOHAraceteranee +IArramARAranMARAHA ." इय पयविभागियाए व ओघियाए व सल्लमुद्धरिय ।। सव्वगुणसोधिखी गुरूवएसं समायरइ ॥ ६१४ ॥ स सामान्यविशेषाभ्यामाभिधाय स्वपणम् ॥ विधत्ते गुरुणा दत्तां विशुद्धिं शुद्धमानसः ।। ६३७ ।। विजयोदया--इय पर्व । पदविभागियाप च विशेषालोचनया या। अधिकार व मामान्यालोचनया ।। सलं मायाशल्यं । उद्धरिय उद्धन्य । नवगुणसोधिनी सर्येचा गुणानां शेरशालाचतानां निमभिलपन । पर वपसं गुरुणोपदिएं प्रायानं समादि सम्बगाले । रोपं देन्यमा नया एबमालोच्य पंचनासोचाविधिभिवायोपसंहरात मूलारा-- गुग्यसं गुरूपनि प्रायश्चित्तं । समादि र दि स.ग्यपरोप: स्यगना हासि । रामा चरदीति वा पाठः । तत्र रोषादित्यांगनानुनिष्ठतीत्यर्थः । अर्थ-विशेषालोचना करके अथवा सामान्यालोचना करके मायाशस्यको हृदयसे निकालकर दर्शन, ज्ञानचारित्र और तपश्चरणों में शुद्धिकी अभिलाषा रखता हुआ गुरुके द्वारा कहा हुआ प्रायश्चित्त रोप, दीनता और अश्रड्रानका त्यागकर क्षपक ग्रहण करता है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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