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________________ लारापना माश्वास SODI यहाँ आचार्य उपयुक्त व्याख्याकारको प्रश्न करते है__ "शान और दर्शनसे भी चारित्रका आत्माके ऊपर अधिक उपकार है" ऐसा किस गाथामें कहां हैं ? पूर्व गाथामें कहाँ ऐसा आप कहते हैं परन्तु यह आपका कहना मिथ्या है. - 'णाणस्स देसणस्स य सारो चरणं इथे जहाखाद' इस वाक्यसे ज्ञान और दर्शनसे भी चारित्रही उपकारी है ऐसा अनुभव आता है क्या आता है ऐसा कहोगे तो वह अनुभवसे विरुद्ध शेनेसे उसकी उपेक्षा करनी चाहिये. यदि यह अनुभव विरुख नहीं है ऐसा कहोगे तो 'कद्दा है' ऐसा क्यों कहा ? और भी मुक्तिके कारण ऐसे शान, दर्शन और चारित्र इन तीनोंमें कोन प्रधान है ! ऐसा प्रश्न होनेपर प्रधानका निरूपण करने के लिये यह सूत्र है ऐसा जो शीर्षक आपने लिखा है वह भी आपके उपर्युक्त निरूपणसे विरुद्ध है. ईसणस्स य सारो चार ऐसा कहोगे तो वह अनुमा क्यों कहा ? और भी प्रा लिये यह Hole कर्मापायो हि कथं पुरुषार्थः दुःमनिवृत्तिः सुखं चामिमतं फलमित्यारेकायां प्रधानपुरुषार्थस्य अखिलवाधाव्यपगमरूपस्य सुखस्य नियंधनतयोपयोगितामाचऐ कर्मापायस्य णिचाणस्स य सारो अव्याबाहं सुहं अणोवमियं ॥ कायचा हु तदळं आदहिदगसिणा चठ्ठा ॥ १३ ॥ विजयोदया-णिव्यावसन य सारो इति । निरचशेषकर्मापायस्थ सारः फलं । अव्ययाई कर्मजन्यसकलदुःस्यापायः कारणाभाचे कार्यस्य अनुत्पत्तेः । अणोवमियं उपमातीतं । कादच्या कर्तव्या । चेवा चेपा । तडं अध्यायाधसुखार्थम् । आदहिदगवेसिगा आत्महितं मृगयता । के नेपा कार्या? आराधनायां मृताचनतिचार ज्ञानदर्शन चारित्रपरिणतिरूपायां। कस्मात् ? निर्वाणफलमाह मूलारा-अव्यायाह निर्तुःख दुःखहेतुनामशेषकर्मणां प्रक्षयात् । तत एव अणोवमियं अनौपम्य 1 स्वर्गादि मुखाना कमाधीनतया सव्याबाधत्वात् । वदट्ट अन्याराथसुखार्थे । आदहिदगषेसिणा आत्महितान्वेषिणा । चेट्टा अनुष्ठान । प्रकृतत्यान्मरणे शानदर्शनचारित्रतप:परिणतिरूपागामाराबनायामिति योज्यं । | ५८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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