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मूलाराधना
शाह
प्रायश्चित्ते आलोपनातिचाराः ' आकपियमित्यादिना वक्ष्यते । प्रतिक्रमणातिचारः स्वकृवाविचारस्य मनसा अजुगुप्सा, अज्ञानतः प्रमादात्कर्भगुरुत्वादालस्याद्वा इदमशुभकर्मयधनिमित्तमनुष्टित दुष्ट कृतमित्येवमादि जुगुप्सा । अज्ञानतःकरणाभावः । उकोमयातिचारसमयाय उभयातिचारः । मघतोऽधिवेको विवेकातिचारः । व्युत्सर्गाविचारः ऋतवःशरीरममताया अनिवत्तिरशुभध्यानपरिणतिः कायोत्सर्गदोषाश्च । तपसः प्रागुक्ता एष । छेदस्यातिचारो न्यूनो जानोइमिति सक्लेशः । मूलातिचारभावतो रत्नत्रयानादान । एवं विनयादीनां अपि सामान्यलक्षणानुसारेण यथाशास्त्रमतिचाराक्षिायाः ।
अर्थ-सम्यग्दर्शन और ज्ञानमें अतिचार उत्पन्न हुए हों, व्रतमें अतिचार उत्पन्न हुए हो, देशरूप अतिचार उत्पन्न हुए हो अथवा सर्व प्रकारोंसे अतिचार उत्पन्न हुए हो ये सर्व अतिचार क्षपक आचार्य के पास विश्वासयुक्त होकर कहे.
विशेषार्थ-सम्यग्दर्शनके शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव ऐसे अतिचार है. इनका स्वरूप दर्शनविनयके प्रकरणमें लिखा है.
ज्ञानके अतिचार-अकालमें अध्ययन करना, श्रुत और श्रुतधर अर्थात् जैनसिद्धान्तज्ञाता उनका अविनय करना, अनुयोगादिशास्त्रोंका अध्ययन करते समय उस अध्ययन के योग्य नियम धारण करने चाहिये. परंतु वे धारण न करना, जिस उपाध्यायसे शास्त्र पढ़ लिया हो उसका नाम छिपाना अर्थात् मैं किसीके पास नहीं पढ़ा हूं. स्वयं मरको शास्त्रज्ञान स्फुरित हो गया है ऐसा कहना. पढने ममय शन्द कम करना और जादा बढाना. अर्धका कथन शाखसे विरुद्ध कहना, ये ज्ञानके अतिचार हैं,
तपके अतिचारोंका वर्णन-स्वयं भोजन नहीं करता है परंतु दुसरोंको भोजन कराता है. कोई भोजन कर रहा हो तो उसको अनुमति देता है. ये अतिचार मन से बचनसे और शरीरसे करना अर्थात् तुम भोजन करो ऐसा कहना, जो भोजन कर रहा है उसको तुम अच्छा करते हो ऐसा कहना ये वचनके द्वारा अतिचार हैं. इसी प्रकारसे शरीरसे और मन से भी अतिचार लगते हैं. सूख से पीडित होनेपर स्वयं मनमें आहारकी अभिलाषा करना, मेरेको पारणा कोन देगा, किसी घरमें मेरी पारणा होगी ऐसी चिंता करना यह अनशन तप में अतिचार है।
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