SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 717
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पलाराधना ६९७ धारण करेंगे? यतिजनमें दोष लगानेसे सम्यग्दर्शन जो कि मोक्षमार्गमें प्रधान माना जाता है उसमें दोष उत्पन्न होता है. अतिचाररूपी बर्फ के आघात से रत्नत्रय रूपी कमलवन सुरझने लगता है, परनिंदा करनेसे नीचगोत्र कर्मका आम होता है. तब निंदक जन अनेक जन्ममें लोगों निंदित होते हैं. दुसरेके अंतःकरण को जो संताप उत्पन्न करते हैं उनको असातावेदनीय कर्मका बंध होता है, तुम अपने धर्मको पुत्रके समान समझो और उसको अयशरूपी कीचडसे मलिन न करो, ऐसा करनेसे तुम्हारी निंदा होगी. अनेक अनर्थों को उत्पन्न करनेवाले परदोषको कोन विद्वान प्रकट करेगा अर्थात् तुम अपने दोष हमारे सामने निःशंक होकर बोलो. हम तुझारे दोष किसीके सामने प्रकट नहीं करेंगे. द्धिं महुरं हृिदयंगमंच पल्हादणिऽजमेगंते || कोई तु पण्णविज्जंतओ वि णालोचए सम्मं ॥ ४७६ ॥ कथायामकथायां च दोषाणां गुणदोषयोः ॥ कायामपि नो कश्चिदालोचयति वक्रधीः ।। ४९० ।। विजयोदया एवं प्रज्ञापनायां सत्यामपि यो नालोचयति त्युत्तरसूत्रार्थः । एवं प्रज्ञायमानोऽपि कपिकः स्वयं सम्यग्नालोचयति रार्थमिदमाह - णिज्जगते । शिद्धं मधुरं ददयंगमं च कोइ त प्रष्णवेज्जतो वि य णालोचए सम्म || तु विचित्रत्वात्पुरुभूतीनामित्युत्तरसूत्रावता मूारा स्पष्टम् । - अर्थ – त्रिग्ध, कर्णमधुर, हृदय में प्रवेश करनेवाला ऐसा भाषण बोलनेपर भी कोई क्षपक अपने दोषोंकी आलोचना करता नहीं तब तो उम्मीदव्वा खवयस्सोप्पीलएण दोसा से ॥ वामे समुद्रमवि गदं सीहो जह सियालं ॥ ४७७ || माश्वासः ४ ६९७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy