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आभार
मूलाराधना
देखी जाती है वह सामायिकादिक आवश्यक है. इन भावसामायिकादिकोंमें इसकी परिणति है या नहीं यह वास्तव्य मुनि देखते हैं, यह स्थान प्रथम नेत्रसे देखकर स्वच्छ करता है या नहीं इसकी परीक्षा करते हैं. मृदु पिच्छिकासे जमीन, कमंडलु, शास्त्र वगैरे उपकरण स्वच्छ करता है या नहीं. धीरे धीरे संमार्जन करता है या त्वरित, जीवोंको उपकरणसें इटाता हुआ उनको पीहा करता है क्या ? उनको फेक देता है क्या ? अथवा विरोधी प्राणिओंको परस्पर मिश्रण करता है क्या ? जो आहारके लिये जा रहे हैं, जिन्होंने आहार ग्रहण किया है, जिन्होने अण्डे ग्रहण किये हैं, जो अपने निवास प्रदेशमें ठहरे हुए हैं, जो भूञ्छित होकर पदे हैं ऐसे प्राणिआको यह मुनि घोरेसे हटाता है या नहीं उसकी वास्तव्य मुनि परीक्षा करते हैं, आगत मुनि के वचन की भी परीक्षा करते है अर्थात आगतमुनि कठोर वचन, परनिंदा स्वप्रशंसा करता है क्या आरंभपरिग्रहों में प्रपच करनेवाला, मिथ्यात्वको उत्पन्न करनेवाला मिथ्याज्ञानको उत्पन्न करनेवाला, असत्य, और गृहस्थोंका वचन बोलता है या नहीं इसकी परीक्षा करते हैं, जो वस्तु जिस स्थानसे लेना है और जो वस्तु जिस स्थान पर रखना है उन वस्तुओंका प्रमार्जन करके ग्रहण निक्षेपण करता है या अन्यथा उसमें प्रति करता है इसका ये मुनि परीक्षण करते हैं. कालादिशद्धि का विचार कर स्वाध्याय करता है या नहीं ? अथवा इस ग्रंथका यह मुनि पठन कर किस रीतीसे अर्थ कहता है. इसकी भी परीक्षा करते हैं. बिहारपरीक्षाका स्वरूप इस प्रकार है-अपने निवासस्थानसे दूर हात वगैरे प्रमाणसे युक्त, प्राणिरहि त, छिद्ररहित, समतलयुक्त विरोधरहित, मार्गसे चलनेवाले लोक जिसको नहीं देख सके ऐसे स्थानमें यह मुनि शरीरमलका त्याग करता है ? अथवा विपरीत स्थानमें शरीरमलका विसर्जन करता है इसकी परीक्षा करते है. यह विहारपरीक्षा कही जाती है, भिक्षाग्रहणपरीक्षा-जो कुछ आहार मिलेगा वह ग्रहण करता है अथवा नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करता है इसका भी वास्तव्य मुनि विचार करते हैं.
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आगंतुको यतिगुरुमुपाश्रित्य सविनयं संघाटकदानेन भगवत्रनुमाहोऽसीति विज्ञापनों करोति । ततो गणधरेणापि समाचारहो दातव्यः संघाटक इति निगदति