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मुलाराना
आनासा
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करणादिशामाथे परीभते इति प्रतिपन्नाः ।। तथा च नत्याउ:-आगंतुम्बास्तव्याः प्रतिलेखाभिः परस्पर यतयः ।।
अन्योऽन्य चरण करणज्ञानानिमित्त परीश्रुते ॥ अपि च-वास्तन्वागंतुकाः सम्यग्विविधैः प्रतिलेखनैः ।।
क्रियाचरित्रयोधाय परीक्षेत परस्परम् ।। अर्थ-आया हुआ मुनि और गणके वास्तव्य अर्थात दोनो मुनि अन्योन्यके आचरणका प्रकार परीक्षा पूर्वक देखते हैं. आये हुए मुनिकी समिति और गुप्तियां निर्दोष है या सदोष हैं इसका परीक्षण वास्तव्य मुनि करते है. आगंतुक मुनि भी उनके समिति गुप्तिओंकी परीक्षा करता है. सामायिकादिक छह आवश्यकॉकी भी वे मुनि अन्योन्य परीक्षा करते हैं. अथवा आचार्योंके उपदेशभेद से आचार अनेक प्रकारका है, उसका परिझान करनेके लिये वे अन्योन्यकी परीक्षा करते हैं. अथवा आगतमुनि अपने साथ रहनकी योग्यता रखता है या नहीं यह जाननेके लिये वे मुनि परीक्षा करते हैं.
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क परीक्ष्यते इत्यवाह
आवास बटाणादिसु पडिलेहणवयणगणाणिक्षेवे || सम्झाए य बिहारे भिक्खग्गहणे परिच्छति ॥ ४१२ ॥
आवश्यक आहे क्षेप स्वाध्याये प्रतिलखने ।।
परीक्षन्ने वचोमागं विशाराहारयोरपि ।। १२३ ।। विजयोदया-आवासराणादिसु थवश्वध संघरमिरार्थिभिः कर्तब्धानि सामायिकादीनि आवदयकान्युभयंते तेषां स्थान स्थिति आवश्यकपरिणलिकाः। दुऊण जहाजा बारसावतमेव च । घस्सिर विसुद्धमिवादिका झिया आदिवानेन गृहीना । रोए आवश्यक.मधानादिषु । गरिलेणषयणगहणणिक्ये । प्रतिलेखने चक्षुग उपकरण वा, बचने, उपकरणानां ग्रा, निश्नगे, सहाए स्वाध्याये, विहारे जंघाधिकारे, भिस्वादणे भिनाग्रहणे च परिपत्रंति परीक्षेत । किमयं सामाविवादमावश्यकालि कति ? कपि वा यथाकाले करोति न चा? फि चा द्वन्धसामायिकादौ प्रअत उत भावसामाधिकारी द्रव्यसामायिकादिकं भवति सामायिकादिक पठतः, कायेन चोक्ता क्रियां कुर्षतः । सायघयोगप्रत्याण्यामे, तीर्थरुदगुणानुस्मरणे, आचार्योपाध्यायादीनां या गुणानुस्मृती, सातिवारनिहागाईयोर,