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________________ etaSES घलाराधना आवासः ४. नहीं होते है ऐसा कह सकते है. असंयत सम्यदृष्टिका तप हस्तिस्नानके समान है. जैसे हाथी तालाबमें स्नान कर निर्मल होता है परंतु आपनी सुंडाके द्वारा धूलको शरीरपर फेककर अपनेको मलिन करता है. तद्वत् तपके द्वारा कर्माश निजीण हो गया तो भी असंयमसे सम्पदृष्टि बहुत कर्मसमुदायको ग्रहण करता है, आचार्य दुसरा दृष्टान्त मंथन चर्मपालिकाका देते है. उसका विवेचन किया है. आचार्यने दो दृष्टान्त क्यों दिये है ? इसका खुलासा इस प्रकार है. सम्यग्दृष्टिने पूर्वमें जितनी कर्म निर्जरा की है उससे भी अधिक कर्म उसको असंयमसे बंध जाता है. यह खुलासा करनेके लिये इम्तिस्नानका दृष्टांन दिया है. हाथी स्नानसे गीला होता है अतः बहुत धूलीका संग्रह उसके अंगपर हो जाता है. उसही प्रकारसे सम्यग्दृष्टिको बहुत कर्मबंधन होता है, जो निर्जरा बंध रहित होती है वही स्वास्थ्य अभीत मोक्षपटान करती है परंत बंधके साथ होनेवाली कर्म निर्जरा मुक्तिका कारण नहीं होती है इसका स्पष्टीकरण करने के लिये आचार्यने मंथन चर्मपालिकाका दृष्टान्त दिया है वह बंध सहित मुक्तिको दिखाती है.. यहां दूसरे विद्वान ऐसा कहते हैं- कालभेदकी अपेक्षा न करके शुद्धि और अशुद्धिको दिखानेकी इच्छासे आचार्यने प्रथम उदाहरण-हस्तिस्नानका गाथामें लिखा है." परंतु यह उनका अभिप्राय युक्ति युक्त नहीं है. क्योंकि, संपूर्ण काँका नाश होना यह शुद्धि है व कर्म सहितावस्थाही अशुद्धि है जब शुद्धि की नहीं तो आचार्य उसको हस्तिस्नानका उदाहरण देकर भी कैसे दिखा सकेंगे. यदि कुछ कर्म नष्ट होना उसको शुद्धि या मुक्ति कहोगे तो ऐसी शुद्धि किस प्राणीमें न मिलेगी? अर्थात् ऐमी शुद्धि प्रत्येक प्राणीमें विद्यमान है. कारण प्रत्येक प्राणीके कर्मस्कंध उसको फल दे देकर खिरतेही है. अतः ऐसी शुद्धि मिलना असंभव नहीं है, वह तो सुलभ ही है, और भी जो उन विद्वानोंने कहा है । जहाँ कालभेदका आश्रय लेकर दो धर्म रहते हैं वहां उन धमें भिन्नता-विरुद्धता दीखती है, परंतु कर्मबंध होना ब उसकी निर्जरा होना ये दो धर्म एक समय में होते हैं अतः ये विरुद्ध नहीं हैं, इस बास्ते यहा दुसरा दृष्टांत मंथन चर्मपालिकाका दिया है. यहां रज्जुसे मंथनदंड वेष्टित भी हो जाता है और मुक्त भी हो जाता है, ये दोन क्रियायें एक समय में होती है
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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