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________________ मूलाराधना मात्रामा ५७८ मुलारा-ओखंडिदा अवय हिताः बंचिता देवे विपर्यामितस्वार्थ टागा Tu || अर्थ- भगवन् | आप सर्व जगत्के जीवोंका हिव कानवाल... आप शानदार नमानुपा सर्व जगतकं जीवोंक स्वामी है. आप अन प्रवास करनेवाले हैं. अथरा संन्यासमराका स्वीकार करनेवाले है एस समय हमको सर्व देश शून्य दिखते हैं. तथा सर्व देश अंधकारमय दीखते हैं. हे प्रभो! आप शीलयुक्त, गुणयुक्त, और बहुश्रुत हैं. आप प्राणिओंको दुःख न देनेवाले हैं. परंतु अब आप प्रवास करनेवाले है अथवा सन्याममरण धारण करनेवाले हैं. ऐसे समयमें हमको सब देश खंडित दीखते हैं, सव्वस्स दायगाणं समसुहदुक्खाण णिप्यकंपाणं ।। दुक्खं खु विसहिदं जे चिरप्पवासो बरगुरूणं ॥ ३८३ ॥ शयकानामशेषस्य सूरिणामपकारिणाम् । समानसुग्वदुःखानां वियोगो दुःसहश्चिरम् ।। ३९१ ।। पवित्रविद्योयतदानपंडितैस्तनुभृतां तापविपादनोदिभिः ॥ गणाधिपैर्भाति विना न मेदिनी निरस्तपः सरसीव वारिभिः । ३९२ ॥ बुधैर्न शील रहिता नियिनी तपस्विदाने रहिता गृहस्थना ।। गुरूपदेश रहिता तपस्विता प्रशस्यने नित्यमुम्बप्रदाधिनी । ३०३ । मनीषित वस्तु समस्तमंगिनां मूरमाणामिव चनां मना॥ गुणगुमणां विरहो गरीयसा न शक्यते साडभपाम्नमाम ।। ५.४ .. इति अनुशिष्टिसनम् । विजयोन्या-सव्वस्स दायगाणं वागदर्शनचारितोदामोदतानां । समसुहदकावाण सम्यग्वयोः समाः नानां । शिवपाणं परीपदभ्यो निश्चलानां । तरूण महना गुरुणा । चियालो निकालप्रयासों वियोगः । दुस्वं त्रु विसहिदु जे सोदुमतीव दुष्करं॥ मूलारा--सव्वस्स ज्ञानादः । पिप्पकपाणं परीषदोपसंगैषु निःक्षोभाणां । दुवं खु दुःखशोक एन । । E
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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