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________________ आवासः लाराश्ना Terola समझना भी अयोग्य है, क्योंकि अबध्यादिशानसे जाने गए पदार्थोपर सत्यभावना होती है उसको भी सम्यग्दर्शन मानना चाहिये. अवधिमान, मनः पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान भी वस्तुके यथार्थ स्वरूपको ही जानते हैं अतः वहां जो सत्यभावना होती है वह भी सम्यग्दर्शन है ऐसा मानना चाहिये. यदि 'धुत शब्दसे ' सर्व प्रकारके सम्यग्ज्ञानका अहण होता है क्योकि यहां श्रुत शब्द उपलक्षण चाती है. ऐसा कहोगे तो योग्य ही है. अतः अब इस विषयमें अधिक लिखनेको आवश्यकता नहीं है, सम्मत्तणाण दंसण इस गाथामें सिद्धोंके आठ गुणोंके नाम बताये है. उसमें सम्यक्त्व गुण मथम लिखा है परंतु आप तो सम्यग्ज्ञानका धर्म बता रहे हैं. अतः सम्पग्दर्शन आपके मतसे गुण नहीं है यह सिद्ध होता नहीं. अत: आपका कहना इस गाथाफे विरुध्द है. क्षायिक सम्यग्दर्शन तथा क्षायोपशामिक सम्यग्दर्शन इसमें आप भिन्नता मानते हैं या नहीं? यदि भेद नहीं है तो पांच भावोंका वर्णन करने वाले आगमसे आपका कहना विरुद्ध होता है. यदि भेद मानोगे तो एक परिणाम दुसरे परिणामका स्वरूप नहीं होता यह कबूल करना पडेगा. अर्थात क्षायिक परिणाम और क्षायोपशमिक परिणाम परस्पर एक दुसरेके स्वरूप हो नहीं सकते. जितने परिणाम है ये परिणामीका स्वरूप होते है यह मानना न्यायसंगत है. अथात् जीव परिणामी है तथा उसके ज्ञानादिक गुण परिणाम है, परंतु ज्ञानको परिणामी मानकर सम्यग्दर्शनको उसका परिणाम स्वरूप मानना अन्याय्य है. जो परिणाम भिन्न भिन्न प्रतिबंधक कारण नष्ट होनस उत्पन्न होते है ये अन्योन्य धर्मि धर्मताको नहीं प्राप्त होते है, जैसे अवधि ज्ञान व फेवल मान ये दोन जान अपने अपने प्रतिबंधक कारणोंका अभाव होनेसे उत्पन्न होते हैं अनुः उनका अन्योन्य धर्म धर्मिभाव नहीं है वसे शान और सम्यग्दर्शनमें धर्म धर्मिभाव नहीं है. ज्ञानाराधना और चारित्राराधना एसी दो आराधना क्यों नहीं मानी है. ऐसे प्रश्नपर आचार्यका यह उत्तर है"शनकी आराधना करने वालेको सम्यग्दर्शन आराधना होती है नहीं भी होती है." यहांपर नानशब्द सामान्यवाचक्र भी है और संशय, विपर्यय तथा सम्यग्ज्ञानवाचक भी है, अर्थात संशय ज्ञान, विपर्यय ज्ञान, सम्यग्ज्ञान ऐसे शानके भेद देखे जाते है, अतः शानमें परिणत हुआ आत्मा निश्रयसे तत्व श्रद्धानमें परिणत होगा ऐसा नियम नहीं है. क्योंकि यह मिथ्याज्ञानपरिपात हो तो उसमें तमन्दाका अभाव TA S HRESTORAGHATOPATANGA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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