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भावासः
मूलाराधमा
समय आसन कंपित होनेसे देवांगनाये भीतीसे इंद्रोंको आलिंगन देती है तब उनका मुख हपसे कमलतुस्य प्रफुल्लित होता है.
इंद्र जब जन्माभिषेक करने का कार्यक्रम देवोंको सुनाता है तब वे आदरसे अपने हाथ जोडकर उसकी आज्ञा मानने हैं. नगारेकी ध्वनि सुनकर सर्व इंद्र और सामानिकादिक देव भी एकत्र होकर सौधर्मेंद्रके पास जाते. हैं. परस्पर की ईप्यासे देव वक्रियिक शरीर धारण कर आकाशमार्गसे प्रयाण करने लगते हैं. जिनबालकका जन्माभिपकोत्मत्र करने के लिये जब इंद्राणी राजभवन में आती है तब उसके न पुरोंको ध्वनि सुनकर राजहंमी राजभवन के अंगणमे मविलाम गमन करती है.
ऐरावतसे उतरकर जय इंद्र जिनवालकको ग्रहण करनेके लिये अपने हाथ पसारता है नव दाभ भग ध्वनीने मिहनादौ सब दिशारों शब्दमय होती है. प्रणाम करने समय अनेक पटहाँका गंभीर और धीर शब्द होता
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इंद्र अपने हाथमें अष्टमी चंद्रके समान शुभ्र चामर लेकर प्रभुक ऊपर दोरते हैं. तब जिनबालकको देखनेके लिये इंद्रोंकी दरियां उत्कंठित होती हैं. सफेत छत्ररूप मेघामें आकाश व्याप्त होता है. बिजली के समान पीरखनेवाली पताकाओंग आकाश व्याप्त होता है, इंद्रनीलमणिआम ग्ने हुये सोपानोपर पांच रखकर दयों का सैन्य आगे गमन करता है, ऐरावत हाथी क दंतपंक्तिक सरोबरम कमलोपर देवांगनायें लीलासे पदनिक्षेप कर नृत्य करता हैं. हजारो देवी अष्टमंगल धारण कर आगं गमन करती हैं.
उस समय द्वारपाल देव क्षुद्र देबाको हटात है. आत्मरक्ष जातीके हजारो देव अपने ऊपर पड़ा हुआ रक्षा का कार्य एकाग्रता से करते हैं. इस रीतीसे देव मेरु पर्वतके सौष जाकर उसको प्रदक्षिणा देते हैं. तदनन्तर मेरुपर्वतके ऊपर शिखरक समान ऊंचे सिंहासनपर इंद्र प्रभृको विराजमान करता है. अनेक देव समूह क्षीर समुद्र का जल लाते हैं नब इंद्र प्रभृका अभिषेक करता है इसके अनंतर इंद्राणी प्रभूको बालक योग्य अलंकारों से भूषित करती है. हजारो इंद्रके भाटदेव प्रभूकी स्तुति करते हैं, उस समय इंद्र भी आनंदसे नृत्य करते हैं, इस तरहका जन्माभिषेक कल्याण देखनेसे यतिओंका सम्यग्दर्शन दृढ होता है,