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मुलाराधना
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प्रस्तावना.
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यह महान् मंथ मूलाराधना अथवा भगवती आराधना इस नाम से प्रसिद्ध है. जैसे मुनिओंके प्रधान आचार विशेष को मूलगुण कहते हैं. वैसे मोक्षप्राप्ति के लिये रत्नत्रय प्रधान कारण होनेसे उसको मूल कहते हैं. इस मूलभूत रत्नश्य की प्राप्ति जिससे होती है ऐसे उपायों को आराधना कहते हैं. इस ग्रंथ में मूलभूत रत्नत्रय की प्राप्ति होने के उपायोंका सविस्तर वर्णन किया है अतः इसको मुढाराधना यह अन्वर्थ नाम दिया गया है. अत एव पं. आशा घरजीने इस अंध का मुलाराधना इस नाम से उल्लेख कर के उसके ऊपर मूळाराधनादर्पण नाम की पञ्जिका लिखी है.
प्रस्तुत ग्रंथ निर्माता ऋषिराव शिवकाचार्यजीने भगवती आराधना ऐसा भी इस महान ग्रंथ का नामकरण किया है, 'आराधना भगवदी एवं तीय गिदा मंत्री इस गाथार्द्धके द्वारा उपर्युक्त नामकरण का खुलासा होजाता है,
जैसे पूज्य, पूजक, पूजा और पूजा फल ऐसे चार विभाग जिनपूजन प्रतिपादक ग्रंथोंमें किये गये हैं वैसे इस अन्य में भी आराध्य, आराधक, आराधना और आराधनाफल इन कारणों का वर्णन आचार्यने किया है. रत्नत्रयामाराभ्यं भव्यस्त्वाराधको विशुद्धात्मा आराधाना सुपायस्तत्फलमभ्युदयभोक्ष स्तः ॥
रहन अमूल्य चीज है और उससे पदार्थ की प्राप्ति होती है. सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक् चारित्र रत्न के समान अमूल्य हैं. उनसे जीवों को स्वर्गादि मोक्षान्त फल प्राप्त होते हैं अतः आचार्य इनको रत्नत्रय यह सार्थक नाम देते हैं. यह रत्नत्रय आराध्य है. निर्मल परिणामवाले भव्य जीवको आराधक कहते हैं. गृहस्थ में मुनिवर्य जिनके परिणाम निर्मल हैं वे इस रत्नश्रय को प्राप्त कर लेते हैं अतः उनको आराधक कहते हैं. जिन उपायोंसे रत्नत्रयकी प्राप्ति होती हैं ऐसे उपायोंको आराधना कहते हैं. जैसे धार्मिकों में वात्सल्यभाव रखना, उनके अवर्णवादको हटाना धार्मिकों को कोई तकलीफ देता होगा तो उसका निराकरण करना बगैरे उपाय करनेसे सम्यग्दर्शनादि रत्नोंकी
प्रस्तावना
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