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________________ अध्याय राधना A शुभ परिणाम मात्र ही प्रस्तुत प्रसंगमें उपयोगी होते हैं ऐसा सिद्ध हुआ, अतः सिध्दादि परमेष्ठिओंके गुणोंमें अनुराग करना यह सर्व विघ्न दूर करनेके लिए आवश्यक है ऐसा सिद्ध हुआ, विद्वान् पुरुष शास्त्रमारंभमें अहंदादिकोंको क्रमपूर्वक नमस्कार करते हैं." ऐसा आपने जो भाष्य किया वह सरोजसा ज्ञात होता. वस्तु प्राप्त होनेमें अथवा प्राप्य वस्तुका जन्म होनेमें जो कारण लगते हैं ये उपाय हैं, जहां जिस कारणसे प्राप्य वस्तु प्राप्त हो वह वहां उपाय समझना चाहिए, अतः सर्व ही अहंदादिविषयक गुणानुराग तथा तत्पुररसर वचन और शरीरकी चेष्टायें क्रमयुक्त ही होती हैं ऐसा नियम नहीं है. एकेक उपाय भी इष्टफल प्राप्तिके लिये सहायक हो सकता है, ऐसे बहुत से उपाय हैं जो एकेक भी इष्टफल प्राप्तिमें सहायक होते हैं, अतः ऐसे स्थानोंपर क्रमका आश्रय करनेकी आवश्यकता नहीं होती है. जहां क्रमये उपायोंका आश्रय करनेसे कानगिदि होती है वहां उपायक्रनका शुरपा लेना चाहिए, जैसे घट बनाने की इच्छा हो नो नट्टीका मर्दन करना, पिंट करना, चाकपर उसका आरूढ करना वगैरे उपाय क्रमसे ही करने पड़ेंगे. अन्यथा घटोत्पत्ति न होगी. बताके मुखसे एक समगमें एक ही शब्द निकलेगा. अनेक वचनोंकी प्रवृत्ति होना असंभव है. इस वास्ते शब्द क्रमसे ही मुख से निकलेंगे. अत: नमस्कार वचन में वक्ताकी स्वेच्छाही मुख्य रहेगी. नमस्कार विषयमें स्वेच्छाप्रवृत्ति शास्त्रों में प्रायः देखी गई है. यहां आचार्य उसके थोडेसे उदाहरण देते है, यथा--'सिद्ध सिद्धहाणं ठाणमपावमसुहगयाणं' अर्थात् जो अनुपम सुखको प्राप्त हुए, कृतकृत्य, ऐसे अईत्परमेटिओंका शासन अनादि है, तथा वह सिद्धीका कारण है. इस श्लोकांशमें जिनशासनके गुणोंकर हिं केवल स्मरण किया है. क्वचित शास्त्रमें चोवीस तीर्थकरोमिसे प्रथमतः वार लर्थिकर को ही नमस्कार किया है. यथा--एस सरासर मणसिंद इति । यहाँ श्री बुंदधुदाचार्यजीने क्रमसरणका उल्लंघन किया है. पंचास्तिफाय-समयसारमें सामान्यतः संपूर्ण जिनेश्वरोंका स्मरण किया है । वाचे शास्त्रमें अईदादिकोंको नमस्कार न करके केवल जीवगुणका ही स्मरण किया है. जैसे--'धम्मो मंगलमुक्किहमिति । इस तरहसे देखा गया तो नमस्कारके विषयमें अनेक प्रकार होनेसे विपरीत पना की शंका लेना पर्थ है। "साधकोंके उपर अनुग्रह करने के लिये यह शास्त्र है अतः इसमें सिद्धपरमेष्ठिको ही मंगलरूपता है" ऐसा कहना भी अयुक है। हम यहां ऐसा पूछ सकते हैं कि--सिद्धिको चाहनेवाले साधकोंपर अनुग्रह करनेका अधि
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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