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________________ আশ্ব लाराधना १० ..SAMZ दामह दावोंका अनुभव किया है. पांतु यह सब व्यर्थ दुबा, वह दुःखका सहन कुछ आत्मकल्याणकारी नहीं हा. परंतु आराधक ! इस समय जो दाब तेरे द्वारा महा जा रहा है वह तेरे कर्मकी निर्जरा करेगा, वर्तमान दुःखोंका नाम का अतीन्द्रिय, निचल, उपमारहित, बाधारहित मुख देगा इस रीतीसे कहा हुआ आचार्योका उपदेश आगधकके दु:खों का नाश करनेवाल्या होनेसे कवचके तुल्य है. अतः इसको कवच यह नाम देना योग्य ही है, जैसे कमी तजम्त्री बालकका गायगग मानन करनेक लियं उसमें जैसे सिंह शब्डका आगेषण करते है से वहां भी । कवचक गुणाका अध्यागेपः उपदेया में करके उसको करच शब्डले गौरचिन किया है. ममता- जीतता करनाल, गंगाग, वियोग, मुख जोरदार मापक न्य वायुर्वि कारण करना झाण-अन्य पदार्थ चित्तवृत्ति हटाकर एक विषयमें उमको नियुक्त करना. लश्या-मान वचन और शरीरक व्यापार कपाययुक्त होना, फल-आराधनासे प्राप्त हुवा साध्य उसको फल कहते हैं. मिजहणा-आराधकका शारीर त्याग. इस तरह भक्त प्रत्यापपानके चालीस अधिकारोंकी संक्षेपसे निरु. तिमात्र कही गई है, अब एकक अधिकारका सविस्तर वर्णन आचार्य यहांसे करेंगे, प्रथमतः अधिकारका वर्णन करते हैं. TDiwanaPaamrpura. नघाहानरूपायानग गाथा वाटिव्य दापसझा ज य समण्गजोमहाणिकरी || उबसग्गा बा देवियमाणुसतेरिच्छया जस्स ॥ ७१ ।। गंगो दुरुत्तरो यस्य जरा श्रामण्यहारिणी।। निरिभानवैदेवरूपसर्गाःप्रवर्तिताः॥७३ || विजयादया- जाहिद । अत्र नवं पदघटना । वाद्विच दुप्पसज्झा मो अरिहो होइ भत्तपदिणाप रति । पिनजामशन मन पथमन चयापन शिकित्स्यः यस्य वियते सो मतप्रत्याख्यान करें । जायति नियति पायापालगन गणः य पामयम्थायां प्राणिनः सा जरा । ससमा जोगदागिरी यति त पापनि A
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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