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________________ मूलाराधना माधान १८६२ का अलग स्वरूप कहा है. इन गुणोंकी भावना में करता हूं जिससे मेरे सर्व विकल्पोंका नाश होकर चित्स्वरूपी अनाद्यनंत ऐसे आत्मामें मेरा अत्यंत लय होवे. १० चतन्यानुभवमय ऐसे सिद्धों के गुणोंकी स्तुति जो महात्मा अपने हृदयमें मानो उकीरी गई, अथवा लिखी गई, हृदयमें मानो स्थापित की गई है इस प्रकार हमेशा मोक्षको इच्छाकरके करता है वह निर्विकल्प शुक्लध्यानसे शरीरके त्यागके साथ संपूर्ण पापराशिका नाश करता है. जबतक ऐसा महात्मा संसारमें रहता है तबतक पुण्योदयसे संसारके वैभवोंको भोगता है. योग्य ही हैं कि पुण्योदयसे क्या हस्तगत नहीं होता है ? इस प्रकार सिद्भस्तव समाप्त हुआ. यशक्तिः। श्रीमानस्ति सपादलक्षविषयः शाकंबरीभूषणः । तत्र श्रीरतिधाममंडलकर नामास्ति दुर्ग महत् ।। श्रीरल्यामुदपादि तन्त्र विमळव्यारवालान्वया । च्छीसलक्षणतो जिनेंद्रसमयवद्धालुसशाधर ॥१॥ सरस्वत्यामिवात्मानं सरस्वत्या मजीजनन् । यःपुर्व छाडं गुण्य रंजितार्जुनभूपतिम् ।। २।। व्यारवालपरवंशसरोजहंसःकाव्यामृतौघरसपानसुतृप्तगात्रः .. .. सलक्षणस्य तनयो भयविश्वचनुराशाधरो विजयतां कलिकालिदासः ।। ३॥ . इत्युदयकीर्तिमुनिना कविसुष्टदा योऽभिनंदितःप्रीत्या | प्रज्ञापुजोऽसीति प योऽभिहितो मदनकीर्तियविपतिना ॥ म्लेच्छशेन सपादलक्षविषये व्याने सुवृत्तक्षति-॥ त्रासाद्विन्ध्यनरेन्द्रदो:परिमळ स्फूर्जभिवोजसि ।। प्राप्तो मालच मंडळे बहुपरीवारः पुरीमावसन ॥ यो धारामपठन्जिनममितिवाकशास्त्र महावीरतः ॥ प्रशस्ति अपूर्ण है. पं. आशाधरजीने अपनी प्रशस्तीका जो परिचय दिया है उसका वर्णन इसप्रकार १ साबर सरोवर जिसका भूषण स्वरूप है ऐसा सपादलक्ष नामका देश है वह त्रिवर्ग संपत्तिसे युक्त है. मंडलकर नामका लक्ष्मीका क्रीडागृहके समान एक बहा काला है. इस काले में बघेरवाल नामक वंशमें जिनेंद्रमतमें श्रद्धालु पेसे पं. आशाधरजी उत्पन्न हुए. इनके पिताका नाम सल्लक्षण था और माताका नाम श्रीरत्नी था. १८६२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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