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________________ लाराधना १८६१ ५ सिद्धो सूक्ष्मता नामक गुण है उस गुणसे इतर जीवोंको प्रतिबंध नहीं होता है और न वे इसको प्रतिबंध कर सकते हैं. समस्त वस्तुओं को वह स्पर्श करती है परंतु कोई भी उसको स्पर्श करनेमें असमर्थ है. भगवान् इस गुणको जान तो लेते हैं परंतु उनके भी वचन संपूर्णतया इसके वर्णन में असमर्थ है. अर्थात् यह सूक्ष्मतागुण इतना है कि सूक्ष्मा जिनवाणी भी इसको ग्रहण नहीं करती है. है सिद्धपरमात्मन् मैं संसारनाशके लिए उस तुझारे सूक्ष्म गुणका चिंतन करता हूं. ६ सिद्ध परमेष्ठि लोकके अग्रभागमें ऊ गति स्वभावसे जाकर वहां चन्द्रसमान शुभ्र ऐसी मोक्ष शिला परविष्ठते हैं. उस शिलाको प्राग्भारा ऐसा नाम है. वह एक योजन में कुछ कम ऐसे लोकाग्र में है. और वातवलय में विराजमान है जब सिद्ध परमेष्ठि सर्व योगोंसे रहित हो जाते हैं तब उनका आकार अन्तिम शरीरसे कुछ कम ऐसा होता है. उस समय उनमें पवित्र अवगाह नामक गुण उत्पन्न होता है. इस गुणके जलसे एक स्थानमें भी पाधारहित अनंतसिद्धों के साथ में रहते हैं. यद्यपि अनन्त गुणों का आश्रय स्थान हैं तो भी वे निराकुल अनन्त सिद्धोंके साथ रहते हैं यह सब हे सिद्धात्मन् ! आपके अवगाहगुणका ही प्रभाव है. ७] कोई क्षुद्र वादी लोक ऐसा कहते हैं - यदि सिद्धात्मायें भारी वजनदार हैं तो निराधार लोके पिंड समान नीचे गिरने चाहिए और यदि वे हलकी हैं तो अकके कापीस समान प्रचण्ड तनुराववलय के द्वारा इधर उधर फेके जाने चाहिए. परंतु जिनेंद्र भगवान् सिद्धों को लघु अथवा गुरुभी नहीं मानते हैं. वे अगुरुलघु नामक गुणके धारक हैं ऐसा कहते हैं. इस गुणका स्वरूप वे क्षुद्रलोक क्या जान सकते हैं ? ८ शारीरिक, मानसिक तथा वाचनेिक दुःखरूपी शस्त्रोंका आघात होनेसे जो भयंकर संसाररूपी अग्नि प्रकट हुआ था उसके नाशके लिये हे सिद्धपरमात्मन् ! आपने जो तपरूपी परिश्रम किया था उससे आपको अव्या बाघ नामक गुण प्राप्त हुआ हैं. तटको उल्लंघकर बहनेवाले गुरवसमुद्र के द्वारा आपका चैतन्यमय शरीर अभिषिक्त हो रहा है. आपके उस अव्यावाध गुणकी अंशमात्र भी प्राप्ति हमको होवे इस हेतुसे योगीश्वर श्रम करते हैं अर्थात् तप करते हैं. ९ सिद्धपरमेष्टी यद्यपि अनंत गुण है तोभी उनमेसे ये आठगुण अलग आचार्यने वर्णन किये हैं. अर्थात् व्यवहारको प्रधानता देनेवाले विद्वानोंनं सिद्धों का स्वरूप सत्पुरुषोंके द्वारा भाया जावे इस हेतुसे इन गुणों आश्वास ८ १८६१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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