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________________ मूलाराधना आश्वास THISTARTIYAYSANSAR १८५७ वाताको विनय शक्तिरूपी सौगात मंद होत SHANKAAREERSTARDAMRATARAaweeniestanesecrere २ यह आराधनारूपी महागंगा नदी सर्वत्र जिनेश्वररूपी पम सरोवरसे उत्पन्न हुई है. दिव्यधनिरूपी जल प्रवाहसे सुंदर दीखती है. इसका यह दिव्यध्यानरूपी जलप्रवाह तत्वज्ञप्ति अर्थात् तत्वज्ञानस्वरूपी आकाशसे उत्तरकर निग्रंथतारूपी कुंडमें पड़ता है. रत्नत्रयरूपी वेदाध्य पर्वतके पास आये हुए इसकी तेजस्विता बहुत बढ़ गई है. यह गंगानदी ज्ञानसमुद्रको पूर्ण भरती है. भव्योंको पवित्र करनेवाली यह आराधनारूप गंगा मेरे पापोंका नाश करे. ३ इस आराधना देवीका सम्यक्त्वही मुख है. सम्यग्ज्ञान ही शरीर है. उद्योत, उद्यवन, निर्वाह, सिद्धि और निस्तरणरूपी वीस माहुओंकी शोमासे यह आराधना देवता बडी सुंदर दीखती है. प्रत्येक आराधनामें ये उयोसादिक पांच स्वभाव है. चार आराधना के मिलकर उघोसादिक बीस भेद होत है. तप और चारित्ररूपी सुंदर चरणोसे बड़ी सुहावनी दीखती है. बढी हुई चैतन्य शक्तिरूपी सौंदर्यसे यह युक्त है. एसी यह आराधना आनंद सुधाकी मुख्य देवता है. मैं इस देवाताको विनयसे शरण जाता हूं. इस आराधनारूपी अम्बिकाको मैं वंदन करता हूं. इसने उज्ज्वल आस्तिक्यरूपी किरीट अपने मस्तक पर धारण किया है. कषायोपशमरूपी कांतिसंपन्न पहा हार गलेमें धारण किया है. वैराग्य और संसारमय रूपी कुंडल इसने अपने दोनो कानोंमें धारण किये है. कृपारूपी अंगुठी अपने करांगुलीमें धारण की है. तत्व. चर्चारूपी रशना-करधनी इसने धारण की है. संतोपरूपी नूपुर अपने पांचों में धारण किये है. अहिंसादिक व्रतोंकी भावनारूप मुजालंकार इसने धारण किये हैं ऐसी इस आराधनारूप आम्बकाको मैं नमस्कार करता हूं. ५ मैं इस भगवती आराधनाको अपने हृदयमें धारण करता हूं. इसने लज्जारूपी साडी पेहेनी है, तथा विनयरूपी ऊपरका वस्त्र धारण किया है. शक्तिरूपी कंनुलासे यह सुंदर दीखती है. पुण्यरूपी पत्रलतासे यह उज्ज्व ल दीखती है. निर्मल स्वाध्यायरूपी क्रीडाकमल इसने अपने करमें धारण किया है. पति पभादि शुभ लेश्यारूपी चंदनचर्चासे इसका शरीर सुंदर दीखता है. साम्यरूपी कर्णभूषणों से इसका मुख उज्ज्वल है. ऐसी यह आराधना देवता मेरे हदयपर नानामृतकी वर्षा करे. ६ हे जननी, तूं पंचनस्कारके मिष से मरणके समय भन्योंके अन्तःकरण में कर्णद्वारा प्रवेश करती है. जब तं उनके अन्तःकरणमें प्रवेश करती है तब वे मरणोत्तर त्रलोक्यलक्ष्मीके उत्कृष्ट पात्र बन जाते है. हे भगवति! इष्ट में प्रवर्मनात प्रदेश भगवीत १८५७ २३३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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