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________________ मुलासधना अस्वासः १८४८ अर्थ--कषायोसे रहित, स्त्री, पुरुष, और नपुंसक इन तीन वेदोंसे रहित, ऐसी सिद्धोंकी अवस्था है. सिद्ध कारकत्वरहित, अचल और अलेप हैं. इनकी ये अवस्थायें अविनाशी हैं. क्रोधादिक कषाय तो नष्ट होनेसे और नर्वान कवाय उत्पन्न नही होनेसे वे अपाय और अवेद हैं. अब कुछ साध्य करना नहीं रहा है इस लिये वे अकारक हैं. मोक्षरूप साध्यही अन्तिम साध्य था वह उन्होंने प्राप्त कर लिया इस लिये वे अकारक है. पूर्व शरीर नष्ट होगया है और नबीन देह उत्पन करनेवाले नाम कर्मका नाश हुआ है अतःचे अदेह ही हैं. जो उनका स्वस्वरूप ॥ है उसमें फभीभी अवस्थांतर नहीं होगा क्योंकि, स्वरूपांतर उत्पन करनेवाले कर्मका अत्यंत अभाव होगया है. अय सिद्धमें नवीन फर्मका अभाव है और पूर्वकर्म नष्ट हुआ है इसलिये वे सदा अलग है. जम्मणमरणजलोघं दुक्खपरकिलेससोगत्रीचीयं ।। इय संसारस मुई तरते चदुरंगणावाए ॥ २१५८ ।। संसारार्णवमुत्तीर्णा दुःखनक्रकुलपकुलं ।। ये सिद्धिसौधमापन्नास्ते सन्तु मम सिद्धये ॥ २२३३ ॥ विजयोदया-जम्मणमरणजलोघं जन्ममरणजलौघं दुःखसंक्शशोकवीचिकं संसारसमुद्र । सम्यादर्शन शानचरित्रतपस्संचितचतुरंगनाया सरंति ॥ परममुक्तिवर्णनम्-संसारोच्छे पूर्वफत्यात्परम मुक्तेलदुनोपाय मनुशास्ति मुलारा--परिकिलेस परिततिः। घदुरंग सम्यग्दर्शनज्ञानाचारित्रतरांति व्यवहारेण संसारलंघनोपायः पर. मार्थव तु तन्मय आत्मैच ॥ अर्थ---यह संसारसमुद्र जन्म और भरण रूपी पानीसे भरा हुआ है, दुःख, संक्लेशपरिणाम और शोक रूपी लहरें इसमें नित्यही उछलती है. सम्यग्दर्शन, सम्यग्वान, सम्यकचारित्र और तप इन चार अवयवाँसे बर्ना हुई आराधना रूप नौकासे सत्पुरुष इस संसारसमुद्र से उत्तीर्ण होते हैं. १८४८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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