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________________ मूलाराधना आबासा अर्थ-इस जगतमें उत्कृष्ट प्रद्धिको अर्थात् चक्रपतिपद धगैरहकी सम्पत्ति प्राप्त होने पर भी मनुष्यों को वह सिद्धोंका अनुपम मुख प्राप्त नहीं होता है. अतःइन सिद्धोंका सुख अन्यावाघ है. देविंदचकवठी इंदियसोखं च जे अणुहवंति ॥ सद्दरसरूगांभफरिसपश्यनाम लोए ॥ २११८॥ रूपगंधरसस्पर्शशब्दैर्यत्सेवितः सुखम् ॥ तदेतदीपसौख्यस्य नानतांशोऽपि जायते ॥ २२२८॥ विजयोदया-देविंदचकपट्टी देवाचकर्तिनश्च यदिद्वियसुखमनुभवंति शनरसरूपगंधस्पर्शात्मकं लोके प्रधान ॥ अव्वाबाधं च सुहं सिद्धा जं अणुहवंति लोगग्गे ॥ तस्स हु अणंतभागो इंदियसोक्खं तयं होज्ज ॥ २१४९ ॥ विजयोव्या-अय्याचाध मुई अध्यावाधात्मकं मुर्ख यत्सिद्धा लोकाऽनुभवंति तस्यानंतभागो भवति यदिद्रिय सुसं पूर्वव्यावर्णितं ॥ मूलारा-फरिसप्पयं स्पर्शात्मक शब्दाधुपमोगप्रभवत्वात् । इंद्रादिसुखस्य सिद्धसुखानंत मागत्वमाह-- मृलारा-पष्टम् । अर्थ-स्पर्श, रस, गंध रूप, शब्द इत्यादिकों से जो सुख देवेंद्र चक्रवर्ति वगैरहों का प्राप्त होता है. जो कि इस लोकमें श्रेष्ठ माना जाता है. वह मुख सिद्धोंके मुखका अनन्तवा. हिस्सा है. सिद्धोंका सुख घाघारहित है वह उनको लोकाग्रमें प्राप्त होता है. जं सम्बे देवगणा अच्छरसहिया सुहं अणुहवंति ॥ तत्तो वि अणंतगुणं अव्वाबाहं सुहं तस्स ॥ २१५० ॥ १८४३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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